अष्टभुजा देवी मंदिर: इस्लामिक कट्टरपंथियों के कुकर्मों का करारा जवाब

यह मंदिर उन कट्टरपंथियों को करारा जवाब है जिन्होंने सदियों से और आज भी हमारे धार्मिक स्थलों को नष्ट करने का प्रयास किया था और कर रहे हैं।

0
978
अष्टभुजा देवी मंदिर
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित अष्टभुजा देवी मंदिर। (सांकेतिक चित्र, Wikimedia Commons)

इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो पता चलता है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हमारी संस्कृति, सभ्यता और धार्मिक स्थलों का विनाश कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन फिर भी इतिहास मुगलों के कुकर्मों पर परदा डाल अक्सर उसके गुणगान करता नजर आता है। आज हम ऐसे ही एक मंदिर की बात करेंगे जिसे मुगलों ने ध्वस्त कर देने का पूरा प्रयास किया था। 

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित अष्टभुजा देवी मंदिर। यहां अष्ठभूजा देवी की मूर्ति स्थापित है। जो प्राचीन काल से अब तक अपने अस्तित्व को बनाए हुए है। आपको बता दें कि इस मंदिर में देवी की बिना शीश वाली प्रतिमा स्थापित है। जिसे प्राचीन काल में औरंगजेब द्वारा खंडित कर दिया गया था। कुछ लोग इस मंदिर को लेकर टिप्पणी करते हैं कि शस्त्रों में बताया गया है कि खंडित प्रतिमाओं की न तो पूजा की जाती है न ही घर या मंदिर में रखा जाता है। लेकिन आपको बता दें कि इस मंदिर को किसी परंपरा की वजह से नहीं बल्कि यह मंदिर उन कट्टरपंथियों की निशानी है जिसे ध्वस्त कर देने में वह नाकामयाब रहे थे। यह मंदिर उन कट्टरपंथियों को करारा जवाब है जिन्होंने सदियों से और आज भी हमारे धार्मिक स्थलों को नष्ट करने का प्रयास किया था और कर रहे हैं। 

अष्टभुजा देवी मंदिर
मुगल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) ने 1699 ई. में हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश जारी किया था। (सांकेतिक चित्र, Wikimedia Commons)

मंदिर से जुड़ा इतिहास क्या है?

जिस क्षेत्र में यह मंदिर विद्यमान है उस क्षेत्र का जिक्र रामायण (Ramayana) और महाभारत (Mahabharata) काल में भी देखने को मिलता है। इसलिए इस विषय में आज भी मतभेद हैं कि इस मंदिर का निर्माण किसने और कब करवाया था। मंदिर की दीवारें, उत्कृष्ट नक्काशियों व विभिन्न प्रकार की आकृतियों को देखने के बाद इतिहासकार व पुरातत्वविद इसे 11वीं शताब्दी का बना हुआ मानते हैं। अर्चेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Archaeological Survey of India) के रिकॉर्ड्स के मुताबिक मुगल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) ने 1699 ई. में हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश जारी किया था। तब उस समय मंदिर को बचाने के लिए यहां के पुजारी ने मंदिर के मुख्य द्वार का निर्माण कुछ इस प्रकार करवाया की यह बाहर से देखने पर मस्जिद सा प्रतीत हो। ऐसा मुगलों में भ्रम पैदा करने के लिए किया गया था। मुगलिया फौज लगभग इस मंदिर को मस्जिद समझकर इसके सामने से पार हो गई थी। लेकिन एक मुगल सेनापति को मंदिर में टंगे घंटे पर नजर पड़ गई। इसके बाद औरंगजेब की फौज ने मंदिर में प्रवेश किया और बर्बरता पूर्ण मंदिर में स्थित प्रतिमाओं के सिर धड़ से अलग कर दिए। 

आज भी वह मूर्तियां इस मंदिर में इसी रूप में देखने को मिलती है। इस मंदिर में अष्टभुजा देवी की मूर्ति भी स्थापित थी लेकिन यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि वह 15 साल पहले चोरी हो गई थी। हालांकि उसके बाद यहां के लोगों ने देवी अष्ठभुजा की पत्थर की प्रतिमा स्थापित कर दी थी। 

यह भी पढ़ें :- जटोली शिव मंदिर: जहां के पथरों को थपथपाने से आती है “डमरू की आवाज।”

आपको यह भी बता दें कि इस प्राचीन मंदिर के मुख्य द्वार पर एक विशेष भाषा में कुछ लिखा है। यह कौन सी भाषा है और यहां क्या लिखा है, यह समझने में सभी इतिहासकार, पुरातत्वविद अब तक असफल रहे हैं। कुछ इतिहासकार इसे ब्राह्मी लिपि (Brahmi Script) का मानते हैं। कुछ इसे उससे भी पुरानी कोई अज्ञात भाषा का मानते हैं। लेकिन यहां क्या लिखा है अब तक कोई नहीं समझ पाया। 

इस अत्यन्त प्राचीन मंदिर और इतिहास में इस मंदिर का उल्लेख होने पर भी इस मंदिर की दशा अत्यंत दयनीय है। इस प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर को नजरंदाज करने का यही अर्थ है कि इतिहास तो मुगलों का गुणगान कर रहा है और हिन्दू सोया हुआ है।  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here