फिजिकल एजुकेशन फॉऊंडेशन ऑफ इंडिया (पेफी) (Physical Education Foundation of India) ने भारत सरकार के खेल एवम युवा कल्याण मंत्रालय के सहयोग से 23 जून को इंटरनेशनल ओलंपिक डे पर एक वेबिनार का आयोजन किया जिसकी थीम ‘ओलंपिक मूवमेंट इन इंडिया’ (Olympic Movement in India) रही। कार्यक्रम की शुरूआत प्रसिद्ध शारीरिक शिक्षाविद् एलएनआईपीई ग्वालियर के पूर्व डीन डॉ. ए.के. उप्पल के संबोधन से हुई। डॉ. उप्पल ने ओलंपिक के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए बताया प्राचीन ओलंपिक खेलों का आयोजन ई.पू. 776 में यूनान में आयोजित किए गए थे।
शुरूआत में इन खेलों में सिर्फ दौड़ ही एकमात्र प्रतियोगिता होती थी। फिर बाद में पेंटाथलान, मुक्केबाजी आदि खेलों को भी शामिल किया गया। बाद में इन खेलों पर रोम के ईसाई सम्राट ने रोक लगा दी। और ओलंपिया नगर में स्थापित स्टेडियम ध्वस्त कर दिया।
आधुनिक ओलंपिक खेलों को फिर शुरू करने का श्रेय फ्रांस के समाजशास्त्री डॉ. पियरे डी कुबर्टिन को जाता है जिन्होने 4 अप्रैल 1896 को यूनान में इन खेलों का फिर से आयोजन किया। आधुनिक ओलंपिक खेल प्रथम विश्व युद्ध (World War I) 1916 तथा दूसरे विश्व युद्ध 1940 व 1944 को छोड़कर प्रत्येक चौथे वर्ष विश्व के विभिन्न स्थलों पर इन खेलों का आयोजन होता है।
डॉ. उप्पल ने कहा कि इन खेलों को आयोजित करने का प्रमुख उद्देश्य शारीरिक व नैतिक गुणों के साथ-साथ शिक्षा, संस्कृति अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रेम व सद्भाव को प्रोत्साहित करना है। डॉ. उप्पल ने बताया कि प्रथम आधुनिक ओलंपिक में केवल 13 देशों के 285 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। पर साल दर साल इसके आयोजन में प्रतिभागियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती रही। विगत वर्ष 2016 के रियो ओलंपिक में 12 हजार प्रतिभागियों ने इन खेलों में भाग लिया था।
वेबिनार को संबोधित करते हुए भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव राजीव मेहता ने इन खेलों की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ओलंपिक खेल पूरे विश्व को एकजुट करने और आपसी भाईचारा मजबूत करने, पूरे विश्व में प्रेम और सौहार्द फैलाने का एक जरिया है। खेलों के जरिए हम दूसरे देशों की सभ्यता संस्कृति से परिचित होते हैं। खिलाड़ियों को एक दूसरे की सभ्यता और संस्कृति की जानकारी मिलती है।
मेहता ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि हम आज हर राज्य और जिले में इंटरनेशनल ओलंपिक डे का आयोजन कर रहे है। कोविड 19 की वजह से हमारी खेल गतिविधियां एक साल से बंद रही हैं। टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) की तैयारी करने वाले हमारे खिलाड़ियों को काफी परेशानी हुई है। सरकार ने अपने खिलाड़ियों की तैयारी के लिए हर संभव सहायता उपलब्ध कराई है। हमे उम्मीद है कि हमारे खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
मेहता ने कहा कि किसी भी खिलाड़ी तैयार करने में शारीरिक शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। शारीरिक शिक्षक ही वो प्रथम व्यक्ति होता है जो विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को खोजता है। खेल प्रशिक्षक का काम बाद में प्रतिभा को तराशना होता है। राजीव मेहता ने फिजिकल एजुकेशन फॉऊंडेशन ऑफ इंडिया (पेफी) के द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की और भविष्य में संस्था को मदद देने का आश्वासन दिया।
भारतीय ओलंपिक संघ के कोषाध्यक्ष डॉ. आन्नदेश्वर पांडेय ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में ओलंपिक मूवमेंट तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक खेल हर व्यक्ति तक नहीं पहुंचेगा। समाज में हर व्यक्ति किसी ना किसी खेल में रूची लेगा तो देश में एक खेल कल्चर विकसित होगा।
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डॉ. पांडेय ने कहा देश में खेलों को बढ़ावा तब मिलेगा जब देश में शारीरिक शिक्षक और शिक्षा की बेहतरी के लिए काम होगा। उन्होनें बताया की विकसित देशों खिलाड़ियों की ट्रेनिंग 40 फीसद मानसिक और 60 फीसद शारीरिक होती है। ग्रास रूट लेवल पर खिलाड़ी को तैयार करने के लिए शारीरिक शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। डॉ. पांडेय ने कहा कि भारतीय ओलंपिक संघ आने वाले दिनों में शारीरिक शिक्षकों के लिए अभियान चलाएगी।
हॉकी कोच व द्रोणाचार्य अवार्डी ए.के. बंसल ने अपने संबोधन में कहा कि कुछ वर्षों पहले तक ओलंपिक में भाग लेना ही बड़ा महत्वपूर्ण समझा जाता था। पर अब ओलंपिक को लेकर भारत में जागरूकता बढ़ी है। अगर जीत या हार की भावना नहीं होगी तो खेल से उत्साह खत्म हो जाएगा। बंसल ने कहा कि ओलंपिक खेलना ही काफी नहीं है खिलाड़ी का जुड़ाव खेल से हमेशा हो। खेल का माहौल बनाने के लिए ये चीजें जरूरी है। बंसल ने आगामी टोक्यो ओलंपिक में शिरकत करने जा रहे खिलाड़ियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि खिलाड़ी देश के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें। क्रीड़ा भारती के राजश्री चौधरी और प्रसाद महानकर ने अपने संबोधन में पेफी के द्वारा किये जा रहे कामों की प्रशंसा की और टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने जा रहे खिलाड़ियों को शुभकामनाएं दी। (आईएएनएस-SM)