मोहन दास करमचंद गांधी। जिन्हें पूरा विश्व बापू के नाम से भी जनता है। भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति के लिए गांधी जी ने कई अहिंसक आंदोलन को शुरू किया था। समाज से जुड़े अहम मुद्दों को उजागर किया था। विश्व पटल पर गांधी जी केवल एक नाम नहीं हैं अपितु शांति और अहिंसा के प्रतीक माने जाते हैं।
गांधी जी (Gandhi ji) कभी भी सामाजिक भेदभाव सहन नहीं कर सकते थे। भारत के नागरिकों के बीच असमानता एवं उच्च और निम्न की भावना का उन्होंने सदा विरोध किया था और इसी की तरह गांधी जी ने आज ही के दिन यानी 8 मई 1933 को देश के अछूत समुदायों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए 21 दिन का उपवास शुरू किया था। यह अस्पृश्यता के खिलाफ उनकी एक बड़ी लड़ाई थी। गांधी जी ने 1933 में साप्ताहिक हरिजन पत्रिका (Harijan Magazine) की शुरुआत की थी। अछूतों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए गांधी जी द्वारा एक नया अभियान शुरू किया गया था। जिसे उन्होंने हरिजन का नाम दिया था। लेकिन इस लड़ाई में गांधी जी को उनके अपने अनुयायियों से समर्थन हासिल नहीं हो पाया था।
उसके बाद दर्शकों तक उनके महान विचारों का अनुसरण करने के लिए गांधी जी ने एक साल बाद यानी 9 मई 1934 को ऐतिहासिक पदयात्रा को आरम्भ किया था। गांधी जी और उनके अनुयायियों ने बालकाटी (Balakati) से सत्यभामापुर (Satyabhamapur) तक यह पदयात्रा निकाली थी। जिसमें हरिजनों को भी आमंत्रित किया गया था और 15 मई 1934 को हरिजनों सहित सभी हिन्दुओं के लिए बलियांटा में कुंज बिहारी मंदिर की स्थापना की गई। उसके बाद 16 मई को कटक नागरिकों की एक विशेष बैठक में गांधी जी ने सभी से अपील की, कि लोगों को जातिगत पूर्वाग्रहों को छोड़ना पड़ेगा और सभी मंदिर, स्कूल और कुओं को हरिजन के लिए भी खोलना होगा।
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गांधी जी का मानना था कि यह अस्पृश्यता (Untouchability), भेदभाव की भावना समाज में हिंसा और विभाजन की भावना को पैदा करेगा। गांधी जी ने हरिजन सेवक संघ के माध्यम से पूरे भारत का दौरा किया था। गांधी जी ने कहा था की अगर “अस्पृश्यता समाज में कायम रहेगी तो हिन्दू धर्म का विनाश हो जाएगा|” गाँधी जी की इस बात ने सभी को आकर्षित किया और आगे चलकर भारत की आजादी के बाद अस्पृश्यता निवारण का कानून बनाया गया। अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) के लिए विशेष आयुक्तों को भी नियुक्त किया गया।
हालांकि अस्पृश्यता की भावना आज भी हमारे देश में, समाज में पूर्ण रूप से विद्यमान है। लेकिन उस वक्त गांधी जी द्वारा किए गए संघर्ष ने इस भावना को बहुत हद तक खत्म कर दिया था।