तथाकथित #Secular बुद्धिधारियों द्वारा चल रही देश को बदनाम करने की कवायद

By: Shantanoo Mishra 

देश कई मत और प्रतिक्रियाओं में विभाजित है। कोई सेक्युलर होने का डंका पीट रहा है तो कोई उदारवादी सोच को खुद पर हावी बता रहा है। किन्तु न तो किसी को गलत दिख रहा है और न ही कोई देखना चाहता है, ऐसा इसलिए कि वह उनके एजेंडा से मेल नहीं खाता। 2 जनवरी 2021 को विवादित कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी को भगवान पर आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए मध्य प्रदेश में गिरफ्तार किया गया था। साथ ही 28 जनवरी 2021 को मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने मुनव्वर फारुकी की जमानत याचिका को ख़ारिज कर दिया था। 

लेकिन इन तथाकथित बुद्धिधारियों को केवल एक आदमी ही दिख रहा है, उन्हें यह नहीं दिख रहा कि जेल में एक मुस्लिम के साथ तीन अन्य हिन्दू भी कैदी हैं। यही उदाहरण है कि सभी के लिए एक समान कानून कार्य करता है। मगर ताज्जुब तब होता है जब लोग इन अपराधियों पर धर्म का ठप्पा लगा देते हैं। वॉशिंगटन पोस्ट की पत्रकार राणा अयूब ने शुरुआत से इस मामले को धर्म के चश्मे से देखा है। कानून की धर्मनिरपेक्षता पर तब सवाल उठते जब वह तीनों हिन्दू रिहा हो जाते और मुनव्वर को जेल में रखा जाता, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

ऐसा क्यों है कि जब भी ऐसे मामले उजागर होतें हैं तभी इन्हे धर्म का नकाब पहनने की जरूरत पड़ती है? क्या इन्हें भारत के इलावा कोई अन्य इस्लामिक बाहुल्य देश नहीं दिख रहा है? जहाँ आतंकी संगठन अपने ही लोगों पर अत्याचार कर रहा है। यह वही लोग हैं जिन्होंने सिखों को हिन्दुओं के प्रति भड़काया है, अन्यथा जिस धर्म का जन्म ही हिन्दू धर्म से हुआ हो उसके विपरीत होकर गाली देना यह बात हजम नहीं होती। 

आज कई इस्लामिक देशों में गृहयुद्ध की स्थिति चरम पर है, आय दिन आत्मघाती हमले और गोलीबारी की खबर दिखाई या सुनाई दे जाती। मगर इस विषय पर इन बुद्धिधारियों के सोच पर न जाने किस तरह का ताला लग जाता है? यह ही नहीं भारत के पड़ोसी देश में जब अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होते हैं, उस समय यह Secular तबका न जाने कौन से बिल में छुप जाता है? किन्तु इनकी नींद तब खुलती है जब देश का अपमान करने वालों पर गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही होती है। तब इन सबको देश का अपमान भी उचित लगता है। साथ ही न तो इस पर कोई अवॉर्ड वापसी होती है और न किसी के ट्विटर से निंदा के दो शब्द लिखे जाते हैं।

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विपक्ष में बैठी सभी पार्टियाँ आग में मतलब खोजने और आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलती हैं। मुनव्वर फारुकी से लेकर कन्हैया कुमार सबको हीरो बता देती है, क्योंकि जिसने भी सत्ता पक्ष के खिलाफ बोला वह इन पार्टियों के आदरणीय है। 

जब एक बड़े मीडिया हाउस द्वारा #HinduforGranted हैश टैग अभियान को शुरू किया गया था तब ‘The Wire’ के रघु कर्नाड ने भी इस विषय पर ट्वीट करते हुए लिखा था कि “क्यों हम मुनव्वर फारुकी की हिंसक गिरफ़्तारी को धार्मिक भाषण बनाम स्वतंत्र भाषण के मामले के रूप में बताना बंद नहीं करते। वह पहले से ही झूठा है। यह नए राजनीतिक उद्यमिता का एक केस स्टडी है: मुसलमानों के अपराधीकरण के तरीके ढूंढे … पार्टी में आगे बढ़ें। शून्य भावनाएं शामिल।” 

क्या यह कोई राजनीतिक दल का व्यक्ति है, या उस से नाता रखता है? फिर देश को ऐसे भ्रामक स्थिति में यह सभी क्यों डालने का संघर्ष कर रहे हैं। वह इसलिए क्योंकि देश से बड़ा इन के लिए एजेंडा है। किन्तु न तो इन्होने लाल किले पर हुए देश के अपमान के विषय में कुछ कहा और न ही पाकिस्तान में हो रहे अल्पसंख्यकों पर मुँह खोला। इसलिए इनकी मंशा से यह संदेह की स्थति पैदा होती है कि “क्या तथाकथित #Secular बुद्धिधारियों द्वारा चल रही देश को बदनाम करने की कवायद?” 

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