उग्रं वीरं महा विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखं।
नृसिंहम भीषणं भद्रं, मृत्युर मृत्युं नमाम्यहं।।
अर्थात : जो काल का भी काल है। जो भयंकर है, वीर है, जो स्वयं विष्णु है। जिसके मस्तक हर दिशा में प्रदीप्त हैं। जो नरसिंह है, जो प्रलयंकर हैं और कल्याणकारी है। मैं उस ईश्वर को नमन करता हूं।
सीमा के उस पार दुनिया के अन्य हिस्सों में हिन्दू समुदायों द्वारा होली बड़ी धूम – धाम से मनाई जाती है। लेकिन जिस मंदिर में रंगों की शुरूआत हुई थी क्या आप उसके विषय में जानते हैं? प्रहलादपूरी मंदिर जो इतिहास में मुल्तान शहर में था, एक समय पर यहां अपनी छटा बिखेरता था लेकिन आज इसका अस्तित्व खंडहर हो चुका है। ऐतिहासिक और पौराणिक सूत्रों से यह ज्ञात होता है कि, होली की इस गाथा के उत्सर्जन का स्त्रोत मुल्तान, पाकिस्तान के पंजाब सूबे से ही हुआ है।
आज प्रहलादपूरी मंदिर के अवशेष यहां केवल अपना अस्तित्व तलाश रहे हैं। लाहौर से लगभग 350 किमी दूर एक अत्यंत प्राचीन शहर बसता है, जिसका नाम है मुल्तान। इतिहास में इस शहर के संरक्षक संत बहाउद्दीन जकारिया और शाहरुख-ए-आलम हुआ करते थे। जिनके कई सूफी दरगाह आज यहां देखने को मिलते हैं
संत बहाउद्दीन जकारिया की दरगाह के बगल में, उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक, प्रहलादपूरी मंदिर के अवशेष अब भी पाए जाते हैं। जो कभी शहर का केंद्र बिंदु हुआ करता था। जहां अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने अवतार लिया था। मुल्तान पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में होली की उत्पत्ति प्रहलादपूरी मंदिर से ही मानी जाती है। कहा जाता है कि, प्रह्लादपूरी मन्दिर का मूल मंदिर जहां भगवान विष्णु की प्रतिमा थी, का निर्माण हिरणकश्यप के पुत्र प्रहलाद द्वारा किया गया था। भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के सम्मान में इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
मुल्तान में कई ऐसे मंदिर खड़े हैं जो अपने परिवेश से बेखबर हैं। उनमें से कई खंडहर भी हो चुके हैं और केवल करीबी जांच से उनकी वास्तविकता की पहचान स्पष्ट हो सकता है। इसी क्रम में यह हिन्दुओं का प्रहलादपूरी मंदिर मुल्तान की मुस्लिम विजय के बाद नष्ट हो गया था। यह अब केवल जमीन में धंसा हुआ है। ऐसी किवदंतियां भी है कि; इस स्थल पर एक अन्य मंदिर का निर्माण किया गया था परन्तु मुस्लिमों द्वारा उसे नष्ट कर दिया गया। भारत – पाकिस्तान विभाजन के बाद मुल्तान पाकिस्तान के नए देश का हिस्सा बन गया और इसकी हिन्दू आबादी बड़ी संख्या में भारत आ गई थी। विभाजन के कुछ दशकों के बाद इसी मंदिर के निकट एक दरगाह बनाई गई और मस्जिद का निर्माण भी किया गया। जिसके बुर्ज ने मंदिर के प्रांगण तक को घेर लिया था।
मंदिर के अतीत की झलकियों की तरफ नजर दौड़ाएंगे तो पता चलेगा कि, 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद, मस्जिद के विनाश का बदला लेने के लिए मंदिर के बाहर इकठ्ठा हुए सैकड़ों मुस्लिमों की भीड़ ने बचे – खुचे प्रह्लादपूरी मंदिर को भी नष्ट कर डाला था। 19वी सदी तक आते – आते प्रह्लादपूरी मंदिर का अस्तित्व पूर्ण रूप से मिट्टी में मिल चुका था।
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एक ऐसा मंदिर जहां से रंगों के त्यौहार की शुरुआत हुई थी उसकी स्मृतियां तक अब खो चुकी हैं। प्रह्लाद की पौराणिक कथा, उसके पिता को हराने वाले बाल – संत, शहर के अत्याचारी राजा हिरणकश्यप इन सभी को मंदिर या शहर में दुबारा कभी दोहराया नहीं गया।
एक समय था जब इस मंदिर में शहर की सबसे भव्य होली समारोह की मेजबानी की जाती थी। माताएं अपने बच्चों को होलिका की पौराणिक कथा सुनाती थी, जो हिरणकश्यप की दुष्ट बहन थी। जिसे आग से प्रतिरक्षण का वरदान प्राप्त था। हिरणकश्यप ने होलिका को अपने बच्चे के साथ आग में कदम रखने को कहा था। हालांकि दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से होलिका आग की लपटों में घिर गई और भक्त प्रहलाद बच गया था। होली की पूर्व संध्या पर जलती हुई आग को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाने लगा। हिरणकश्यप को भी भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार द्वारा मारा गया था। अंततः इस राक्षस राजा के अत्याचारी शासन से मुक्त कराया था और शहर के लोगों ने परित्यक्त प्राचीन टीले पर प्रहलाद के सम्मान में एक मंदिर का निर्माण किया और पहली बार यहां होली मनाई गई थी।
अभी भी मुल्तान में हिन्दू अल्पसंख्यकों द्वारा यहां भगवान की पूजा अवश्य की जाती है परन्तु दुर्भाग्य यह है कि अब यह प्रह्लादपूरी मंदिर अपना अस्तित्व खो चुका है। मंदिर के रंग और याद दोनों ही पाकिस्तान के मुल्तान शहर से फिके हो चुके हैं। ऐसे कई प्राचीन मंदिर, मूर्तियां जो हमारी सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक थे उन्हें मुस्लिमों द्वारा खंडित किया जा चुका है।