By – Keminni Amanor
मीडिया में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर किए एक नए अध्ययन का कहना है कि समाचार संगठनों को महिला दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए।
रिपोर्ट जारी करने वाली महिला लुबा कासोवा (Luba Kassova) ने VOA से बात करते हुए कहा कि न्यूज़ रूम में न्यायसम्य वातावरण को हासिल करने के लिए सबसे पहला कदम तो यही होना चाहिए कि पत्रकार न्यूज़ रूम में बिखरी असामनता को स्वीकार करें।
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द मिसिंग पर्सपेक्टिव्स ऑफ वीमेन इन न्यूज़
“The missing perspective of women in news” रिपोर्ट में भारत के साथ-साथ केन्या, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे बड़े देशों को केंद्र बिंदु बनाया गया है। रिपोर्ट में चार संकेतक मुद्दों को ध्यान में रखा गया है : कार्यस्थल में विविधता, न्यूज़रूम लीडरशिप , समाचार कहानियों में महिलाओं का स्रोत के रूप में योगदान और खबरों में लैंगिक समानता के मुद्दों पर हो रही चर्चा। रिपोर्ट के अनुसार न्यूज़रूम में समानता के नाम पर, पिछले 10 वर्षों में मात्र थोड़ी बहुत ही प्रगति हुई है।
रिपोर्ट के लिए डेटाबेस तैयार करने के लिए 2,000 से अधिक लेख और तीन केस स्टडीज़ का अध्ययन किया गया, और लगभग 12,000 प्रकाशित कंटेंट्स को प्राथमिकता दी गयी और 56 मिलियन से अधिक वास्तविक कहानियों का विश्लेषण भी किया गया था।
शीर्ष स्थानों पर पुरुषों का बोलबाला है
लुबा कासोवा (Luba Kassova) ने कहा कि न्यूज़रूम में शीर्ष स्थानों पर मुख्य रूप से पुरुषों का बोलबाला है, और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी महिला आवाज़ों की अनुपस्थिति साफ दिखती है।
अध्ययन में समाचार एकत्र करने की प्रक्रिया में असंतुलन पाया गया है। वहां भी पुरुष ही प्रधान है। रिपोर्ट की मानें तो 2005 और 2015 के बीच विश्व स्तर पर समाचार जगत में पांच विशेषज्ञों में से मात एक विशेषज्ञ महिला हुआ करती थी। वर्त्तमान की दशा पर नज़र डालें तो भारत में ऑनलाइन न्यूज़ में पुरुषों का ज़िक्र महिलाओं के ज़िक्र से छः गुना अधिक है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जीवनशैली से सम्बंधित खबरों में महिला वर्ग सबसे अच्छा कवरेज करती है, इस तथ्य के विपरीत उन्हें नीति निर्धारण या वर्तमान से जुड़ी ख़बरों की कवरेज के लिए अधिक कहा जाता है।
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दुनिया अपनी आधी आबादी के परिप्रेक्ष्य से वंचित है
केन्या के डेली नेशन के कार्यकारी संपादक, पामेला ने VOA से कहा कि महिला वर्ग को समान स्थिति में ना रख कर दुनिया अपनी आधी आबादी के परिप्रेक्ष्य से वंचित है।
कासोवा ने बताया कि अमेरिका और ब्रिटेन में मी टू आंदोलन के बाद भी खबरों में महिलाओं के मुद्दों को कोई ख़ास प्राथमिकता प्राप्त नहीं हुई है।
लुबा कासोवा (Luba Kassova) ने यह भी माना कि बदलाव तभी आएगा जब समाचार जगत इस बदलाव की ओर अपनी सीमाओं से बाहर आएगा और इस दिशा में अपने प्रयास करेगा। (VOA)