सुशांत सिंह राजपूत की मौत एक दुखद घटना है। लेकिन सच ये है की इस मौत से किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। लोगों के लिए हर घटना एक मौके की तरह होती है, उसी प्रकार सुशांत सिंह राजपूत की मौत भी लोगों के लिए एक अवसर के अलावा और कुछ भी नहीं है। सच तो ये है की हम सारे गिद्ध हैं, और सुशांत की मौत पर अपना हिस्सा लेने आए हैं।
जितनी बड़ी एजेंसी, उतना बड़ा उसका हक़। टीवी मीडिया तो घटना के पहले मिनट से ही अपना हिस्सा लेने पहुँच गया था।। मौत की खबर आते ही पिता से ये पूछने चल पड़े की उन्हे कैसा लग रहा है। कैसा लगेगा? बेटे के मौत हुई है, खुशी तो नहीं ही होगी ना। किसी करीबी के मौत के बाद एक आम आदमी पर जो बीतती है वही उन पर बीत रही होगी।
चैनलों के बाद ऑनलाइन मीडिया पोर्टलों का नंबर आया। उन्होने भी बड़े क्लिकबेट हैडलाइन के साथ खबरें चलाई। इस घटना पर कुछ तथकथित ब्लॉगर भी जम कर फायदा उठा रहे हैं। उसके बाद, यूट्यूब, और फिर टिकटॉक वाले अपना काम तो कर ही रहे हैं। अपने स्तर पर इस घटना को हर कोई अपने फायदे और अपनी लोकप्रियता के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
ऐसा देखा जाता है की कुछ लोग अपनी समस्या को अक्सर सोशल मीडिया पर साझा किया करते हैं। हाँ, ये सच है की उनमे से कई लोग इंटरनेट पर बाकियों का ध्यान आकर्षित करने के मकसद से ये करते हैं, लेकिन उनमे से कई, हकीकत में ऐसे हैं जो मानसिक परेशानी का सामना कर रहे होते हैं।
आपको याद होगा की कल तक इन्ही लोगों को गाली दी जा रही थी, या ये कहते हुए उनकी बातों को हंस कर टाल दिया जाता था, की, “फिर शुरू हो गया इसका…”। आज वही गाली देने वाले लोग इन्स्टाग्राम फ़ेसबूक, और ट्वीटर पर लिख रहे हैं की “जब भी आपको परेशानी हो, मुझसे बात करिए, लेकिन आत्महत्या मत करिए…” । अफसोस ये मदद का आश्वासन सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित है।
लोग इंस्टाग्राम पर लंबे लंबे आईजीटीवी विडियो बना कर डाल रहे हैं, मानसिक रोग पर लंबे लंबे प्रवचन झाड़ रहे हैं। कुछ इंफ्लुएंसर ने तो सोशल मीडिया पर लाइव सेशन भी चलाना शुरू कर दिया हैं। यूट्यूब पर तो एक मोटीवेशनल स्पीकर ने अपने विडियो के थंबनेल पर ही लिख दिया की, “काश सुशांत ये विडियो देख पाते तो वो आत्महत्या नहीं करते”। ये लिख कर उन्होने सुशांत के प्रति चिंता नहीं जताई है, बल्कि अपने व्युज़ और रीच बढ़ाने की कोशिश की है।
मीडिया चैनल आजतक ने हैडलाइन चलाई की “कैसे हिट विकेट हो गए सुशांत”। ये हमारे मीडिया के गिरते हुए स्तर का प्रमाण है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर दुखी होने की जगह कईयों की आँखें चमक गयी होगी।
टिकटोक पर लोगों ने ऐसी गंद मचाई है की आप देख कर अपना सर पकड़ लेंगे। व्युज़, पब्लिसिटी रीट्वीट, शेयर, फैन और फॉलोवर बढ़ाना ही इनका एक मात्र मकसद है। कुछ दिनों में कोई गायक इस पर गाना बना दे या कोई शॉर्ट फिल्म डाइरेक्टर इस घटना पर आधारित फिल्म रिलीस कर दे तो ये ज़्यादा चौंकाने वाली बात नहीं होगी।
चिंता जता रहे लोगों में से 1 प्रतिशत लोगों को छोड़ दिया जाये तो बाकी बचे 99% लोग चिंता नहीं बल्कि सुशांत की जलती चिता पर अपनी रोटियाँ सेकने की कोशिश कर रहे हैं। एक मौत में भी लोगों को टीआरपी, फॉलोवर और फ़ेम नज़र आता है।
“अपना अपना हिस्सा नोंच कर अपनी भूख मिटाइए और चलते बनिए।“