मंगल ग्रह के एक प्राचीन उल्कापिंड का विश्लेषण करने के बाद जापानी शोधकर्ताओं की एक टीम ने खुलासा किया है कि इस ग्रह पर पानी करीब 4.4 अरब साल पहले बना था। कई साल पहले सहारा के रेगिस्तान में दो उल्कापिंड मिले थे, जिन्हें एनडब्ल्यूए 7034 और एनडब्ल्यूए 7533 नाम दिया गया था। इनके विश्लेषण से पता चला है कि ये उल्कापिंड मंगल ग्रह के नए प्रकार के उल्कापिंड हैं और अलग-अलग चट्टानों के टुकड़ों के मिश्रण हैं। इस तरह की चट्टानें दुर्लभ होती हैं।
हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने एनडब्ल्यूए 7533 का विश्लेषण किया, जिसमें टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रो. ताकाशी मिकोची भी शामिल थे।
साइंस एडवांस नाम के जर्नल में प्रकाशित हुए पेपर में मिकोची ने कहा, “एनडब्ल्यूए 7533 के नमूनों पर 4 अलग-अलग तरह के स्पेक्ट्रोस्कोपिक विश्लेषण और रासायनिक परीक्षण किए। इससे मिले नतीजों से हमें रोचक निष्कर्ष मिले।”
यह भी पढ़ें – विज्ञान के क्षेत्र से सिर्फ पुरुषों को जोड़ना गलत
ग्रह विज्ञानियों को यह तो ज्ञात है कि मंगल पर कम से कम 3.7 अरब वर्षों से पानी है। लेकिन उल्कापिंड की खनिज संरचना से, मिकोची और उनकी टीम ने खुलासा किया कि यह संभव है कि पानी करीब 4.4 अरब साल पहले मौजूद था।
मिकोची ने कहा, “उल्का पिंड या खंडित चट्टान, उल्कापिंड में मैग्मा से बनते हैं और आमतौर पर ऐसा ऑक्सीकरण के कारण होता है।”
यह ऑक्सीकरण तब संभव है जब मंगल की परत पर 4.4 अरब साल पहले या उस दौरान पानी मौजूद रहा हो।
यदि मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी हमारे सोचे गए समय से पहले की थी तो इससे पता चलता है कि ग्रह निर्माण की शुरुआती प्रक्रिया में संभवत: पानी भी बना हो। ऐसे में यह खोज शोधकर्ताओं को इस सवाल का जवाब देने में मदद कर सकती है कि आखिर पानी कहां से आता है। (आईएएनएस)