दुनिया में जिस प्रकार से कोविड-19 महामारी का प्रसार हुआ है और इसे लेकर कई रहस्य भी अभी बरकरार हैं, इसके मद्देनजर विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विश्व को अब एक प्रभावी जैव सुरक्षा फ्रेमवर्क तैयार करना होगा ताकि भविष्य में जैविक खतरों से जुड़े मुद्दों को बारीकी से देखा जा सके। विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) के महानिदेशक डॉ. सचिन चतुर्वेदी ने इस विषय पर मंगलवार को कहा, कोविड-19 के बाद जैविक खतरों के मुद्दों को बारीकी से देखना होगा। सबसे पहले एक वैश्विक और लचीला लेकिन मजबूत जैव सुरक्षा फ्रेमवर्क तैयार करना होगा जो सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की पूरी श्रृंखला को कवर करेगा।”
चतुर्वेदी ने आगे कहा, “इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रारंभिक चेतावनी, नीति निर्माण, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और जैव आपदा से मजबूती से निपटने की क्षमता तैयार करना शामिल होगा। इसके अलावा जैविक युद्ध के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तैयारियों की मदद करने के लिए बायोसाइंस विशेषज्ञता और ज्ञान नेटवर्क को तत्काल विकसित करना होगा।”
उन्होंने कहा कि भारत ने 26 मार्च 2020 को जैविक हथियार सम्मेलन (बीडब्ल्यूसी) को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसके संस्थागत ढांचे को अधिक से अधिक मजबूत बनाने का आह्वान किया।
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बकौल चतुर्वेदी, “इसके अलावा, भारत ने पिछले कई वर्षों में लगातार एसटीआई और निरस्त्रीकरण के मुद्दे को उठाया है। यह एक प्रकार से 2017 में 18 अन्य देशों के साथ दिए गए अपने प्रस्ताव को ही आगे बढ़ाने की प्रक्रिया है जिसके तहत भारत ने सैन्य प्रयोजनों के लिए इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग से संबंधित चुनौतियों का पता लगाने की आवश्यकता को सामने रखा था।”
चतुर्वेदी ने कहा कि उस प्रस्ताव में विश्वास को बहाल करने और निरस्त्रीकरण सत्यापन और हथियारों के नियंत्रण की लागत को कम करने के लिए नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग का भी आह्वान किया था। कई विकासशील देशों ने भारत का समर्थन किया।
अमेरिका के सीनेटर क्रिस फोर्ड, सहायक सचिव, यूएस स्टेट डिपार्टमेंट, ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड नॉन-प्रोलिफरेशन (आईएसएन), ने भी ट्वीट किया कि हम बीडब्ल्यूसी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की प्रतिबद्धताओं के महत्व पर बल देते हैं। कोविड-19 महामारी सभी जैविक जोखिमों को कम करने के लिए बीडब्ल्यूसी से जुड़े सभी पक्षों की प्रतिबद्धताओं के महत्व को रेखांकित करती है। साथ ही इस जरूरत को भी बताती है कि इस क्षेत्र में सहयोग कैसे बढ़ाया जाए।(आईएएनएस)