By: विनायक चक्रवर्ती
सौमित्र चट्टोपाध्याय बंग्ला सिनेमा के एक सदाबहार नायक रहे हैं। बंगला सिनेमा के इतिहास में उनका अपार योगदान रहा है। सिनेमा के अलावा व्यक्तिगत जीवन में भी उनकी छवि एक बेहद साधारण शख्स के रूप में रही है। उनके किरदारों में मध्यम वर्गीय बंगाली युवक की छवि झलकती थी। उस दौर में उत्तम कुमार जैसे नायक उनके समकक्ष रहे थे, जिन्हें महानायक के नाम से पुकारा जाता था।
सौमित्र चट्टोपाध्याय ने अपने किरदारों के माध्यम से वह कर दिखाया, जो शायद बहुत कम कलाकार ही कर पाते हैं। उन्होंने पहले से फिल्मों में दिखाए जा रहे पुरानी अवधारणाओं को तोड़ा, किरदारों को नए सिरे से प्रस्तुत करने पर जोर दिया, आम नागरिक के जीवन को पर्दे पर उकेरने का निर्णय लिया। उन्हें खूब लोकप्रियता भी मिली, लेकिन बावजूद इसके वह वास्तविकता से जुड़े रहे।
दिग्गज फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ उनकी जुगलबंदी कई फिल्मों में देखने को मिली है। इन्होंने साथ में 14 फिल्मों में काम किया है। इनके अलावा, उन्होंने अजय कर और तरूण मजूमदार जैसे प्रख्यात फिल्मकारों के साथ भी काम किया है।
सौमित्र चट्टोपाध्याय को साल 2012 में दादासाहेब फाल्के और साल 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वर्ल्ड सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए साल 2018 में उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन ऑफ ऑॅनर’ से नवाजा गया।
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उन्होंने न केवल सत्यजीत रे की फिल्मों में ‘अपू’ के किरदार को दिल खोलकर जीया, बल्कि 80 के दशक में ‘फेलूदा’ के किरदार में भी वह काफी मशहूर हुए।
साल 1959 में सत्यजीत रे की फिल्म ‘अपूर संसार’ के माध्यम से ही उन्होंने फिल्मों में अपना कदम रखा। यह रे द्वारा निर्देशित लोकप्रिय फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ के आगे का भाग था। फिल्म में उन्होंने शर्मिला टैगोर के साथ काम किया था। इस फिल्म ने आगे चलकर इतिहास रचा।
‘अपूर संसार’ के बाद उन्होंने रे की और भी कई सारी फिल्मों में काम किया, जिनमें देवी (1960), तीन कन्या (1961), अभियान (1962), चारुलता (1964), कापुरूष ओ महापुरूष (1965), अरण्येर दिन रात्रि (1969), अशनि संकेत (1973), सोनार केल्ला (1974), जय बाबा फेलूनाथ (1978), हीरक राजार देशे (1980), घरे बाइरे (1984), गनशत्रू (1989) औैर शाखा प्रोशाखा (1990) जैसी फिल्में शामिल रही हैं।
बंगला सिनेमा जगत के एक और दिग्गज फिल्मकार मृणाल सेन ने सौमित्र के साथ पहली बार साल 1961 में आई फिल्म ‘पुनश्च’ में काम किया था। हालांकि इसके बाद इन दोनों के साथ में काम करने का क्रम बरकरार रहा। दोनों दिग्गजों ने मिलकर ‘प्रतिनिधि’ (1964), ‘आकाश कुसुम’ (1965) और ‘महापृथ्वी’ (1991) जैसी ‘कालातीत’ फिल्में दीं।
मशहूर फिल्मकार तपन सिन्हा के साथ उन्होंने ‘शुदिस्ता पासन’ (1960), ‘झिंदेर बंदी’ (1961), ‘आतंक’ (1984) और ‘अंतर्धान’ (1992) जैसी फिल्में कीं।
सिनेमा जगत में अभिनेता सौमित्र चटर्जी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। अपनी फिल्मों के माध्यम से वह हमेशा दर्शकों के दिलों में जीवित रहेंगे और समय-समय पर अपनी याद दिलाते रहेंगे।(आईएएनएस)