हमारा भारत जिस आज़ादी का जश्न जोरों शोरों से मनाता आ रहा है। हमें उससे जुड़ें इतिहास, क्रांतिकारियों के संघर्ष और उनके बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए। देश की आज़ादी के लिए हमारे कई क्रांतिकारियों और देश के वीर सपूतों ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी। जिसको पढ़ कर, सोच कर आज भी हमारी रूह में जोश और देशप्रेम की ललक उठ पड़ती है।
आज के समय में जहां देश के नेता केवल गद्दी के लिए एक दूसरे को मार – काटने को तैयार हैं , वहीं उस समय समाज का बच्चा – बच्चा देश के लिए मर – मिटने को आतुर था। देश प्रेम , वीरता , बलिदान की एक ऐसी ही मिसाल थे शहीद क्रांतिकारी चन्द्र शेखर आजाद। मात्र 25 साल की उम्र में ही देश के लिए इनके द्वारा दिए गए अतुुुलनीय बलिदान की सराहना जितनी कि जाए उतना कम होगा।
आज ही वो दिन है जब स्वतंत्रता संघर्ष की आंधी में इन्होंने अंतिम सांस ली थी। खुद के लिए एक आज़ाद मौत चुनी थी। उन्हीं की याद में उनके जीवन का छोटा सा अंश ! “चंद्र शेखर आजाद” (नाम चंद्र शेखर तिवारी) का जन्म 25 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा गांव जिसे अब आज़ाद नगर के नाम से जाना जाता है , वहां हुआ था। बचपन से ही शेखर एक आज़ाद प्रवृति के व्यक्ति थे। मेहनती व अटूट देशप्रेमी थे। इनका निशाना इनके उद्देश्यों की भांति हमेशा से अचूक और सटीक था।
चंद्र शेखर आज़ाद कहते थे : दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे। आज़ाद ही रहें हैं , आज़ाद ही रहेंगे। चंद्र शेखर आज़ाद जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में राम प्रसाद बिस्मिल, सुखदेव और भगतसिंह के साथ मिलकर ब्रिटिशों की नाक में दम कर दिया था। उनका मकसद ब्रिटिशों का उनकी बेड़ियों का जाल तोड़ना था और उनका सम्पूर्ण विनाश करना था। आज़ादी की इसी भूख ने ही उन्हें क्रांतिकारी स्वरूप प्रदान किया था। जो आज चंद्रशेखर की सबसे बड़ी पहचान है।
मात्र 14 साल की ही उम्र में शेखर , गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे। उनके क्रांतिकारी छवि के चलते उन्हें एक बार ब्रिटिशों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। जब जज ने उनसे उनका नाम पूछा तो भरी सभा में निडरता से उन्होंने अपना नाम ” आज़ाद ” बताया , पिता का नाम “स्वतंत्रता” और “जेल” को अपना निवास स्थान बताया था। जिसकी सज़ा उन्हें 15 कोड़ों की सुनाई गई थी। किसी अवतार से कम नहीं थे चंद्र शेखर आज़ाद , उन्होंने हर कोड़ों के वार के साथ “वन्दे मातरम” का नारा और महात्मा गांधी की “जय” का नारा दिया था। इसी के बाद से चंद्र शेखर आज़ाद सम्पूर्ण रूप से “आज़ाद” कहलाए थे। 1922 में जब असहयोग आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था तब ब्रिटिशों द्वारा हैवानियत की एक दर्दनाक तसवीर खींची गई थी। जहां उनके द्वारा जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। इसी के विरोध में चोरा चोरी कांड हुआ , जिसमें भड़के हुए आंदोलनकारियों ने ब्रिटिशों की एक पुलिस चौकी को आग लगा दिया था। गांधी जी हमेशा से अहिंसा के पथ पर चले थे, इस हिंसा के बाद उन्होंने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। जिससे बड़े स्तर पर क्रांतिकारियों में निराशा की लहर दौड़ पड़ी थी। लेकिन तब चंद्र शेखर आज़ाद ने अंग्रजों से लोहा लेने के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर काकोरी काण्ड को अंज़ाम दिया था। शेखर कभी भी ब्रिटिशों के हाथ नहीं लगे थे। अंग्रेजों की सत्ता को उन्होनें हमेशा चुनौती दी थी। अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने कई डकैतीयां भी की थी। लेकिन असली डकैती उन्होंने काकोरी ट्रेन को लूट के की। शेखर व उनके साथियों का उद्देश्य ट्रेन से ब्रिटिशों का सरकारी खजाना लूट कर उनसे हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों को पछाड़ सकें। इस कांड के बाद कई गिरफ्तारियां भी हुई थी। कई वीर सपूतों को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
आज ही के दिन 27 feb 1931 को इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में चंद्र शेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज़ व अन्य कुछ साथियों के साथ मिलकर कुछ योजनाएं बना रहे थे। उस समय मानों आग की तरह ये बात फैल कर ब्रिटिशों तक पहुंच गई हो। तब उन्होंने तुरंत चारों तरफ़ से पार्क को घेर लिया था चंद्र शेखर अपने मित्र सुखदेव को भगाने में तो सफल रहे थे। लेकिन खुद वो ऐसा नहीं कर पाए थे , अंग्रेजों के घेराबंदी ने उन्हें जकड़ लिया था। लेकिन हमेशा आज़ाद रहने वाले चंद्र शेखर अपनी मौत की वजह अंग्रेजों को कैसे बनने देते , तब उन्होंने अपनी ही पिस्तौल से खुद को गोली मार कर अंतिम बार ब्रिटिशों की कैद से खुद को आज़ाद कर लिया था। शहीद चंद्र शेखर आज़ाद मरते दम तक भी आज़ाद रहे थे।
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जब – जब ये देश वीर सपूतों को याद करेगा उनको नमन करेगा ,आज़ादी के संग्राम के पन्नों को पलटेगा , तब – तब ये देश शहीद चंद्र शेखर आज़ाद के बलिदानों को गर्व से याद करेगा।