विजय दिवस : आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने 1971 के भारत-पाक युद्ध की नींव रखी

16 दिसंबर 1971 को विजय दिवस की गाथा लिखी गई क्योंकि 13 दिन के युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान पर अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।

0
418
विजय दिवस Indo-Pakistani War of 1971 and Bangladesh genocide
1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया था।

जब गोश्त की भूख समाज में औरतों का सम्मान पैरों तले कुचल कर रख देती है, जब इंसानों के मांस पर हैवानियत के जोंक बैठ कर उनका खून चूसने लगते हैं, जब हमारी उँगलियों के नाखून मानवता का कलेजा चीर देते हैं, जब धर्म, जात-पात और सियासत की आड़ में समाज में इंसानियत का नरसंहार होता है तब जा कर 1971 जैसे युद्ध के शंखनाद के बाद पाकिस्तान जैसे देश के लाखों सैनिक भारत के आगे अपनी नाक रगड़ने पर मजबूर हो जाते हैं।

1971 की उसी जीत को भारत विजय दिवस के रूप में मनाता आया है।

16 दिसंबर 1971 को हर भारतीय के दिल में जय हिन्द की टंकार थी क्योंकि 13 दिन के युद्ध (Indo-Pak War 1971) के बाद भारत ने पाकिस्तान पर अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) से अलग हो कर आज़ाद बांग्लादेश बना।

भारत का हर नागरिक हर साल, 16 दिसंबर यानी विजय दिवस के अवसर पर अपने उन वीर जवानों को याद करता है जो उस युद्ध में शहीद हो गए। हर उस जांबाज के आगे शीश झुकाता है जो युद्ध के लिए आगे बढ़ा। 1971 के भारत-पाक युद्ध में लगभग 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और अंदाजन 9,851 सैनिक घायल वापस लौटे।

पर आखिर ऐसे क्या हालात पैदा हो गए कि 1971 का युद्ध हुआ और भारत को पाकिस्तान से लड़ने के लिए आगे आना पड़ा। इसकी जड़ें हमें बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में हुए नरसंहार में देखने को मिलती हैं।

यह भी पढ़ें – भारतीय लोकतंत्र के वह दहशत भरे 45 मिनट जो आज भी स्तब्ध कर देते हैं

बांग्लादेश में 1971 नरसंहार

26 मार्च 1971 के दिन पश्चिमी पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्च लाइट (Operation Searchlight) के तहत, पूर्वी पकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई शुरू की। उनका मक़सद बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन (Bengali Nationalist Movement) पर अंकुश लगाना था। इस सैन्य कार्रवाई में इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) ने अपना पूर्ण समर्थन दिया।

सूत्रों के अनुसार इस 9 महीने के नरसंहार में करीबन 3 लाख से 30 लाख की गिनती के बीच लोगों की हत्या हुई थी। लगभग 2 से 4 लाख बंगाली मूल की महिलाओं के साथ दुष्कर्म किए गए।

1971 Bangladesh genocide
लिबरेशन वॉर म्यूज़ियम में मौजूद बांग्लादेश नरसंहार से मिले मानव अवशेष और युद्ध सामग्री। (Wikimedia Commons)

इन आंकड़ों को जानने के बाद आपके हृदय में उठे आक्रोश की अग्नि और तीव्र हो जाएगी जब आप जमात-ए-इस्लामी के तथाकथित धार्मिक नेताओं का एक बयान जानेंगे। उन्होंने बंगाल की महिलाओं को “सार्वजनिक संपत्ति” कह कर घोषित किया था।

पाकिस्तानी सेना द्वारा किए नरसंहार में एक और बात निकल कर सामने आती रही है। लोगों का कहना है कि इस नरसंहार में कई हिन्दुओं को मौत की चौखट पर पटका गया था। असल में पाकिस्तानी सेना, पूर्व पाकिस्तान से हिन्दू समुदाय को खदेड़ देना चाहती थी।

शायद इसलिए कई लाख हिन्दुओं ने पूर्व पाकिस्तान से भारत की ओर रुख कर लिया था। मगर उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी ने राजनीतिक एंगल को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान में हो रहे हिन्दू नरसंहार पर कोई चर्चा नहीं की। हालांकि भारत ने शरणार्थियों को अपनाते हुए पाकिस्तान को चेतावनी अवश्य दी। उस समय इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री के पद पर थीं।

अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए – The Ramayana As The Expression of Human Physiology

युद्ध की पहल

युद्ध की पहल पाकिस्तान के नापाक इरादों से हुई थी। भारत से मिली चेतावनी के बावजूद 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने अमृतसर, जोधपुर और अन्य इलाकों पर बम गिराने शुरू कर दिए। इसके बाद भारत ने जवाब दिया और नतीजतन यह युद्ध अगले 13 दिनों तक चला।

Indo-Pakistani War of 1971 and Bangladesh genocide
1971 के युद्ध में जला हुआ पाकिस्तानी टैंक। (Facebook)

16 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तान के लाखों सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। भारत की इस जीत के बाद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान अलग हो गए। और इसी के साथ 16 दिसंबर 1971 की तारीख को विजय दिवस के दिन में बदलते हुए भारत द्वारा कभी ना भूली जाने वाली विजय गाथा लिखी गई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here