“दिनकर को ढूंढा गली गली, है हर पग पर उनकी सीख बसी”
राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ वह रचनाकार थे जिनकी कविताओं ने आज भी अपनी छाप को बरकरार रखा है। वीर रस के कविताओं और महाकाव्यों के लिए प्रसिद्ध रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुँचाया। अपने कविताओं से ‘दिनकर’ ने हर उस नौजवान में नई ऊर्जा को उत्पन्न किया था जिन्होंने स्वतंत्रता का स्वप्न देखा था। आज भी उनकी कविताओं को उसी भाव और जोश से नौजवानों और साहित्य प्रेमियों द्वारा पढ़ा जाता जिस भाव को ‘दिनकर’ हर जन में देखना चाहते थे।
Ramdhari Singh ‘Dinkar’ ने सामाजिक और आर्थिक न्याय के खिलाफ कविताएँ रचीं। उनकी महान रचनाओं में कई कविताएं एवं काव्य शामिल हैं, किन्तु जो प्रेम ‘रश्मिरथी’ और ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’ को मिली, ऐसा शायद ही किसी रचना मिली होगी। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ वह मुखर वक्ता थे जिन्होंने भरी सभा में जवाहरलाल नेहरू की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि “”क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया है, ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाए जा सकें?”
हिंदी भाषा के प्रति उनका प्रेम इस बात से ही ज्ञात हो जाता है कि उन्होंने राज्य सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और भारत सरकार को राष्ट्रभाषा हिंदी के अपमान पर बुरी तरह लताड़ा था। उन्होंने कहा था कि “देश में जब भी हिंदी को लेकर कोई बात होती है, तो देश के नेतागण ही नहीं बल्कि कथित बुद्धिजीवी भी हिंदी वालों को अपशब्द कहे बिना आगे नहीं बढ़ते। पता नहीं इस परिपाटी का आरम्भ किसने किया है, लेकिन मेरा ख्याल है कि इस परिपाटी को प्रेरणा प्रधानमंत्री से मिली है। पता नहीं, तेरह भाषाओं की क्या किस्मत है कि प्रधानमंत्री ने उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहा, किन्तु हिंदी के बारे में उन्होंने आज तक कोई अच्छी बात नहीं कही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं कि क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया था ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाएं? क्या आपको पता भी है कि इसका दुष्परिणाम कितना भयावह होगा?”
अंत में उन्होंने कहा था कि “मैं इस सभा और खासकर प्रधानमंत्री नेहरू से कहना चाहता हूं कि हिंदी की निंदा करना बंद किया जाए। हिंदी की निंदा से इस देश की आत्मा को गहरी चोट पहंचती है।”
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आज 47वें पुण्यतिथि पर उनकी कुछ रचनाओं से उनके भाव को जानने की कोशिश करते हैं।
१. कलम या की तलवार: रामधारी सिंह ‘दिनकर’
"अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान
कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली"
२. शक्ति और क्षमा: रामधारी सिंह ‘दिनकर’
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
३. जियो जियो अय हिन्दुस्तान: रामधारी सिंह ‘दिनकर’
जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।
हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उन रचनाकारों में से थे जिन्होंने सही को सही और गलत को साफ-साफ नकार दिया था।