कोरोना संक्रमण का किशोरों के सामान्य जीवन पर कुछ ज्यादा ही असर हुआ है। शैक्षणिक संस्थाओं के बंद होने के साथ अन्य गतिविधियों पर रोक लगने से इस वर्ग में भटकाव कहीं ज्यादा नजर आ रहा है। इन किशोरों में भटकाव रोकना किसी चुनौती से कम नहीं है। कोरोना संक्रमण के दौरान बीते नौ माह में कई क्षेत्रों से किशोरों से जुड़ी घटनाएं ऐसी सामने आई हैं जो चिंता बढ़ाने वाली हैं। राजगढ़ जिले से किशोरियों के गायब होने के मामले किशोरों में बढ़ते भटकाव की तरफ इशारा करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में 20 किशोरियों के गायब होने के मामले सामने आए, इनमें से 13 तो वापस लौट आई, मगर सात किशोरियों का अब तक पता नहीं चल पाया है।
चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी और चाइल्ड लाइन के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अरुण सालातकर कहते हैं, “किशोरियां आसानी से बहकावे में आ जाती हैं और वे प्रेमजाल में फंसकर नासमझी में घर से भाग जाती हैं या अपहरण का शिकार बन जाती हैं। कोरोना काल में जरूरी है कि किशोरी और किशोर के साथ परिजन ज्यादा समय बिताएं और उनकी समस्याओं को जानने के साथ ज्यादा से ज्यादा संवाद करें ताकि बच्चों में भटकाव न हो।”
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ज्ञात हो कि राज्य में किशोरों और बच्चों के बीच काम करने वाली कई संस्थाएं इन्हें व्यस्त रखने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम कर रही हैं। चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी द्वारा सोशल मीडिया पर बच्चों के साथ लगातार संवाद किए जा रहे हैं। उन्हें तरह-तरह की गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है। साथ ही विभिन्न विषयों पर विस्तार से संवाद भी किया जा रहा है। इन संवादों में विशेषज्ञ और बाल अधिकार आयोग से जुड़े लोग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
बीते कुछ दिनों में बच्चों और विशेषज्ञों के बीच हुए संवाद मंे यह बात भी सामने आई है कि शिक्षण संस्थाएं बंद होने से बच्चों के बीच मेल-मुलाकात का दौर कम हो गया है, वहीं समूह में खेलना-कूदना भी बंद हो गया है। इससे वे बोरियत महसूस करते हैं। (आईएएनएस)