राजमाता विजया राजे ने जनसंघ अध्यक्ष बनने का ठुकरा दिया था ऑफर: मोदी

पिछली शताब्दी में भारत को दिशा देने वाले कुछ एक व्यक्तित्वों में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी शामिल थीं। राजमाता केवल वात्सल्य की मूर्ति ही नहीं थी, वो एक निर्णायक नेता थीं और कुशल प्रशासक भी थीं: मोदी

Rajmata Vijaya Raje Scindia
प्रधानमंत्री मोदी कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए। (सोशल मीडिया)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को एक वर्चुअल कार्यक्रम में ग्वालियर की राजमाता विजया राजे सिंधिया के सम्मान में 100 रुपये का स्मृति सिक्का जारी किया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उनके व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि पिछली शताब्दी में भारत को दिशा देने वाले कुछ एक व्यक्तित्वों में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी शामिल थीं। राजमाता केवल वात्सल्य की मूर्ति ही नहीं थी, वो एक निर्णायक नेता थीं और कुशल प्रशासक भी थीं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राष्ट्र के भविष्य के लिए राजमाता ने अपना वर्तमान समर्पित कर दिया था। देश की भावी पीढ़ी के लिए उन्होंने अपना हर सुख त्याग दिया था। राजमाता ने पद और प्रतिष्ठा के लिए न जीवन जीया, न राजनीति की।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ऐसे कई मौके आए जब पद उनके पास तक चलकर आए। लेकिन उन्होंने उसे विनम्रता के साथ ठुकरा दिया। एक बार खुद अटल जी और आडवाणी जी ने उनसे आग्रह किया था कि वो जनसंघ की अध्यक्ष बन जाएं। लेकिन उन्होंने एक कार्यकर्ता के रूप में ही जनसंघ की सेवा करना स्वीकार किया।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी के इतने दशकों तक, भारतीय राजनीति के हर अहम पड़ाव की वो साक्षी रहीं। आजादी से पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाने से लेकर आपातकाल और राम मंदिर आंदोलन तक, राजमाता के अनुभवों का व्यापक विस्तार रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, हम में से कई लोगों को उनसे बहुत करीब से जुड़ने का, उनकी सेवा, उनके वात्सल्य को अनुभव करने का सौभाग्य मिला है। राजमाता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व थीं। साधना, उपासना, भक्ति उनके अन्तर्मन में रची बसी थी। राजमाता के आशीर्वाद से देश आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। गांव, गरीब, दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, महिलाएं आज देश की पहली प्राथमिकता में हैं।(आईएएनएस)

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