दिल्ली दंगों का इल्ज़ाम, हिंदुओं पर डालने की फिर हो रही कोशिश, 20 दिन पुराने चार्जशीट को एनडीटीवी ने ब्रकिंग न्यूज़ बना कर चलाया

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एनडीटीवी, वायर, स्क्रॉल, न्यूज़लौंड्री (Picture: Twitter)

वामपंथी मीडिया समुदाय द्वारा हिंदुओं को दिल्ली दंगों का जिम्मेदार बताने की मुहिम एक बार फिर से शुरू हो गयी है, जिस पर सवाल उठाने की ज़रूरत है। एनडीटीवी, स्क्रोल, दी वायर, और न्यूज़लौंड्री ने पिछले 48-72 घंटों में जो घिनौनी हरकत की है, उससे साफ ज़ाहिर होता है की, मकसद सिर्फ एक है:  “हिंदुओं को इस दंगे के लिए जिम्मेदार ठहराना”।

पिछले 48-72 घंटों में इन चुनिंदा वामपंथी मीडिया पोर्टलों ने लगभग 20 दिन पुराने खबर को एक साथ इस प्रकार प्रकाशित करना शुरू किया है जैसे ये एक ब्रेकिंग न्यूज़ है, जो इनके हाथ अभी अभी लगी है। आपको बता दें की फरवरी में हुए दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों में करीब 50 से ज़्यादा लोगों के मारे जाने की खबर आई थी। ये तथ्य है की, दंगों में दोनों समुदाय के लोग शामिल होते हैं, हत्याएँ दोनों तरफ से की जाती है, लेकिन फर्क सिर्फ इतना होता है की, एक भीड़ आक्रमण कर हत्या करती है तो वहीं दूसरी भीड़, बचाव में हथियार उठाती है।

क्या हुआ था?

दिल्ली में हुए दंगों के बाद, पुलिस ने सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी कर चार्जशीट दाखिल की है। इन संदिग्ध अपराधियों में से करीब आधे मुस्लिम और आधे हिन्दू समुदाय से हैं। आपने पिछले 2 महीनों से लगातार सफूरा ज़रगर, उमर ख़ालिद, ताहिर हुसैन, खालीद सैफी, शरजील इमाम और इनसे जुड़े अन्य लोगों का नाम सुना होगा,  जिनमे से सफूरा पर, दंगाइयों की भीड़ को एकत्रित करने और उनको भड़काने से लेकर दंगों की योजना बनाने का आरोप है तो वहीं आप पार्षद ताहिर हुसैन पर दंगों की योजना बनाने से लेकर दंगों के लिए करोड़ों रुपये की फंडिंग करने का आरोप है। ताहिर हुसैन के घर की छत से एसिड, पत्थर, पेट्रोल बॉम्ब, गुलेल आदि जैसे दंगों के कई सामान भी पाए गए थे, जिससे ये साफ है की दंगों की तैयारी पहले से ही कर ली गयी थी। अन्य लोगों पर भी इसी प्रकार के आरोप हैं। 

जबसे दिल्ली पुलिस ने दंगों को लेकर ताहिर हुसैन, सफूरा जैसे लोगों पर चार्जशीट दाखिल की थी, तब से ही मीडिया का वामपंथी धड़ा एक सुर में, दिल्ली पुलिस और सरकार पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगा रहा था। एनडीटीवी, वायर, स्क्रॉल, न्यूज़लौंड्री जैसे न्यूज़ पोर्टलों ने रिपोर्ट पर रिपोर्ट छापे थे की किस तरह, दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में कोई दम नहीं है, और दिल्ली पुलिस एकतरफ़ा कार्यवाही कर सिर्फ मुसलमानों को ही निशाना बना रही है। इस बात को वामपंथी मीडिया और उनके चेले, टीवी और ट्वीटर पर चीख चीख कर कहते रहे। उनके इस चीख में ना सफूरा का “दिल्ली के खून से इंकलाब आएगा” वाले नारे शामिल थे, ना ही आईबी अफसर अंकित शर्मा को घंटों तक दंगाइयों द्वारा गोदे जाने  की बात का ज़िक्र था, और ना ही कोई दिलबर नेगी की निर्मम हत्या  पर शोर मचा रहा था, जिसके हाथ को काट कर दंगाइयों ने बाकी शरीर आग में फेंक दिया था। हल्ला सिर्फ इतनी सी बात पर थी की, सफूरा ज़रगर एक गर्भवती महिला है और वो मुसलमान होने की सज़ा काट रही है, और किस तरह सरकार और दिल्ली पुलिस के फर्जी चार्जशीट से उसे प्रताड़ित किया जा रहा है।

दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता-

सच तो ये है की दिल्ली पुलिस ने जिस निष्पक्षता से काम किया है, उस पर एक भी सवाल नहीं उठाया जा सकता है। जिस वक़्त ये वामपंथी धड़ा चीख चीख कर कह रहा था की दिल्ली पुलिस ने सिर्फ मुसलमानों को निशाना बनाया है, उसी वक़्त एक रिपोर्ट आई थी जिसमे ये बताया गया था की दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में लगभग आधे हिन्दू और आधे मुसलमान हैं। मतलब साफ है की, दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल करने से पहले व्यक्ति का धर्म नहीं बल्कि उसका अपराध देखा था।

दिल्ली पुलिस द्वारा तैयार किए गए अपराधियों की सूची में हिंदुओं की संख्या लगभग बराबर होने बावजूद, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की देश भर में एक भी हिन्दू व्यक्ति ने दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाते हुए ये नहीं कहा होगा की दिल्ली पुलिस ने हिंदुओं को निशाना बनाया है। इसकी वजह ये है की, हमने ये माना है की हालात चाहे जो भी हो , एक अपराधी, अपराधी ही होता है। नतिजन, बिना ‘विक्टिम कार्ड’ खेले हमने पुलिस को उनका काम, उनके तरीके से करने दिया।

वामपंथी मीडिया संस्थानों का मकसद-

वामपंथी मीडिया, अपराधियों को बचाने तक ही नहीं रुका, क्यूंकी उनका मकसद, सिर्फ मुसलमानों को ‘विक्टिम’ साबित करना नहीं, बल्कि हिंदुओं को इस पूरे दंगे का जिम्मेदार ठहराना था। इसके लिए, वामपंथी मीडिया संस्थानों का समूह, लंबे समय से एक नियोजित तरीके से काम कर रहा था। 

दिल्ली पुलिस की उन चार्जशीटों में से एक चार्जशीट गोकुलपूरी के लोकेश सोलंकी और अन्य लोगों के ऊपर हुई थी। जानकारी के मुताबिक लोकेश सोलंकी, जतिन शर्मा और अन्य पर इल्ज़ाम है की दंगों के दौरान उन्होनें एक व्हाट्सऐप ग्रुप के ज़रिये लोगों को इकट्ठा कर, 9 मुस्लिम व्यक्तियों की हत्या की थी। ये चार्जशीट भी दिल्ली पुलिस द्वारा अन्य चार्जशीटों के साथ ही दाखिल की गयी थी, जिसे मीडिया पोर्टल ऑपइंडिया ने 13 जून को ही रिपोर्ट किया था। 

ऑपइंडिया की रिपोर्ट

इसका मतलब ये है की, इस जानकारी को आधिकारिक तौर पर गुप्त नहीं रखा गया था, और ये जानकारी पब्लिक डोमेन में थी। लेकिन फिर भी वामपंथी मीडिया संस्थानों ने इस खबर को, उस वक़्त नहीं चलाया था, क्यूंकी उस वक़्त उनका मकसद, दिल्ली पुलिस की चार्जशीट को झूठा और एकतरफ़ा ठहरा कर सफूरा और बाकी आरोपित मुस्लिम दंगाइयों के ऊपर लगे दाग को साफ करना था। अभी कुछ दिन पहले गर्भवती सफूरा ज़रगर को मानवीय आधार पर जमानत दे कर रिहा कर दिया गया है, जिसके बाद से दिल्ली दंगों का मामला कई दिनों से शांत पड़ा हुआ है। 

पिछले 48 घंटों की गतिविधि-

लेकिन पिछले 48-72 घंटों में, वामपंथी मीडिया संस्थानों ने उसी गोकुलपूरी और व्हाट्सऐप ग्रुप से जुड़ी चार्जशीट को अचानक से हाइलाइट करना शुरू कर दिया है, और ये खबर ऐसे चलाई जा रही है जैसे ये एक ब्रेकिंग न्यूज़ है, जिसकी जानकारी अभी-अभी निकल कर सामने आई है। अब वही एनडीटीवी, वायर, स्क्रॉल, न्यूज़लौंड्री जैसी मीडिया संस्थानों को इस चार्जशीट पर 100 प्रतिशत भरोसा हो गया है, जिसे 15 दिन पहले तक दिल्ली पुलिस की चार्जशीट, बेबुनियाद और एकतरफ़ा लग रही थी।

एनडीटीवी, वायर, स्क्रॉल, न्यूज़लौंड्री ने पिछले 48-72 घंटे में, 20 दिन पुरानी इस खबर को एक साथ छाप कर फिर से हिन्दू विरोधी नैरेटिव चलाने की कोशिश की है। इसके ज़रिया ये संस्थान, पूरे दंगे का ठीकरा हिन्दुओ के सर फोड़ना चाहते हैं। 

आप क्रोनोलॉजी समझिए-

  1. पहले एक योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम समुदाय द्वारा हिन्दू विरोधी दंगों को अंजाम दिया जाता है। 
  2. दंगों में शामिल दोनों समुदाय के लोगों पर पुलिस कार्यवाही करती है, और उन पर चार्जशीट दाखिल की जाती है।
  3. वामपंथी मीडिया, मुस्लिम आरोपितों के बचाव के लिए,  दिल्ली पुलिस की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है और चार्जशीट को बेबुनियाद बताती है।
    (उस वक़्त, हिंदुओं पर दाखिल हुई चार्जशीट का ज़िक्र नहीं किया जाता है)
  4. लोगों में इस नैरेटिव को सफलतापूर्वक स्थापित करने के बाद सफूरा और तमाम मुस्लिम आरोपितों को बेगुनाह बताते हुए मुस्लिम के नाम पर विक्टिम कार्ड खेला जाता है। 
  5. सफूरा को जमानत मिलने पर ‘सच्चाई की जीत’ का ढ़ोल पीटा जाता है। 
  6.  फिर कुछ दिन शांति से बैठ कर,  ‘मुस्लिम विक्टिम है’ वाले नैरेटिव को फलने फूलने के लिए छोड़ दिया जाता है। 
  7. 20 दिन बाद एक पुरानी चार्जशीट को उठा कर एनडीटीवी  ब्रेकिंग न्यूज़ चलाता है। 
  8. 48 घंटे में सभी बड़े वामपंथी मीडिया पोर्टल उस खबर को पकड़ कार रगड़ना शुरू करते है। 
  9. ‘मुस्लिम विक्टिम है’ वाले नैरेटिव को स्थापित करने के बाद अब ‘हिन्दू दंगाई है’ वाला नैरेटिव को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। 

अब इस खबर को वामपंथी, हिन्दू विरोधी पत्रकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा धड़ा धड़ शेयर किया जा रहा है।

जांच में आज, भारत से भागे मुस्लिम धर्म प्रचारक, ज़ाकिर नायक द्वारा दिल्ली दंगों की फंडिंग की बात सामने आई है। जानकारी के मुताबिक आरोपित ख़ालिद सैफी ने दंगों से पहले मलेशिया में ज़ाकिर नायक से मुलाक़ात की थी, जिसके बाद गैर कानूनी तरीके से, किस तरह पैसों को भारत भेजा गया था, उसकी जानकारी निकल कर सामने आई है। 

इस क्रम को समझिएगा। संभव है की आने वाले दिनों में हमारे ‘अपोलिटिकल’ युवा एनडीटीवी, वायर, स्क्रॉल, न्यूज़लौंड्री के इन खबरों को देख कर अपने हिन्दू होने पर शर्मिंदा महसूस करने लगे। अगर आप ऐसे युवाओं को देखिये तो उन्हे अपने तरफ से समझाइए, और उन्हे भटकने से रोकिए। जिस चतुरता से दंगों का इल्ज़ाम हिंदुओं पर डालने का प्रयास किया गया है वो जितना दिख रहा है उससे कही ज़्यादा गंभीर है। 

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