समझना तुम्हें है कि समझाने वाले खोते जा रहे हैं

2 अक्टूबर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिवस के रूप में जाना जाता है, किन्तु गांधी जी और उनके विचारों को आज के ही दिन याद करके वापस भुल जाना चाहिए ?

0
440
Mahatma Gandhi 151th Birth anniversary
राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (Wikimedia Commons)

“वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ पराई जाणे रे।” यह बोल आध्यात्मिक कवि नरसिंह मेहता के लिखे गए भजन का एक छोटा सा हिस्सा है, लेकिन इस एक वाक्य में बहुत बड़ी सीख छुपी हुई है। यह वही भजन है जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को प्यारा था और वह इस भजन को अक्सर सुना करते थे। आज भी जब महात्मा गांधी को याद किया जाता है तब इसी भजन को बार-बार दोहराया जाता है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कुछ इसी प्रकार के स्वाभाव को बढ़ावा देते थे, न किसी से बैर रखो और न ही दूसरे के अंदर अपने प्रति कड़वाहट पैदा होने दो। गांधी फकीरों की भांति रहते हुए भी न केवल अपने कर्तव्यों का निर्वाहन किया बल्कि पूरे विश्व के लिए आदर्श के रूप में उभर कर सामने आए। उनके अहिंसक विरोध प्रदर्शनों ने अंग्रेज़ों को इस देश को छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

यह भी पढ़ें: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का प्रेरणा से भरपूर सफर

किन्तु, क्या आज गांधी जी के 151वें जयंती पर उनके विचारों और उन विचारों का पालन करने वालों का कोई मोल है? या सिर्फ गांधी जयंती पर ही उन विचारों को दोहराया जाना चाहिए, यह विषय विचार-विमर्श का विषय है जिसका ना तो बंद कमरों में निष्कर्ष निकल पाएगा और ना ही मोमबत्तियों को कतारों में लगा कर निकल पाएगा।

हम एक ऐसे युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं जिस में गांधी जी की सीख तो दूर, अपने मौलिक कर्तव्यों को भी भुला दिया गया है, दुश्मन पराया नहीं पड़ोसी या खुद का भाई है, जिसे मतलब है तो सिर्फ खुद से और केवल खुद की ख़ुशी से। धर्म, सम्प्रदाय में फूट डालकर अपना वोट बैंक चमकाने वाले इसी देश के राजनेता और बुद्धिजीवी हैं।

हे राम! यही आखिरी शब्द थे जिन्हे महात्मा गांधी ने दुनिया को छोड़कर जाने से पहले कहा था मगर आज उसी राम पर यह देश कई खेमों में बटा हुआ है, कोई राम के होने का प्रमाण मांग रहा है तो कोई उनको काल्पनिक बता कर करोड़ों भक्तों की आस्था को ठेस पहुँचाने का अपराध कर रहा है, केवल और केवल वोटों के लिए और नोटों के लिए।

एक समय था जब गांधी जी ने अग्रेजों के अत्याचार का मुँह तोड़ जवाब देने के लिए दांडी तक पैदल यात्रा को प्रारम्भ किया था और देखते ही देखते कई देशभक्तों ने उनके साथ कदम से कदम मिलाया था, किन्तु आज एक अफवाह से ही एक बेगुनाह की हत्या कर दी जाती है और उन्ही अफवाहों से देश में दंगों को जन्म दिया जाता है।

यह भी पढ़ें: भगत सिंह के बसंती चोले की वेदना को समझने की कोशिश

आज गांधी जी और उनकी बातें केवल किताबों और भाषणों में सिमट कर रह गई हैं। गांधी जी सही थे या गलत इस विषय पर भी यह देश दो खेमों में बट रहा है। आज को बचाना भी हमारे हाथ में है, और कल का विनाश भी हमारे हाथ में है, ज़रूरत केवल मानसिकता को बदलने की और गांधी के विचारों को समझने की है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here