काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद पर एक बार फिर कोर्ट का नया फैसला सामने आया है। जिससे राजनीति में एक बार फिर हिन्दू – मुस्लिम के विवाद ने गरमा – गर्मी का माहौल कायम कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में Archaeological survey of India यानी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण को, पूरे ज्ञानवापी परिसर को जांच करने के आदेश दिए हैं। यहां यह जान लेना आवश्यक है कि, यह मामला लगभग 350 वर्ष पुराना है। कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर की खुदाई के लिए, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological survey of India) के पांच सदस्यों की टीम बनाने को कहा है। जिनमें से दो सदस्य मुस्लिम वर्ग से भी शामिल होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि, अगर जांच में इससे जुड़े साक्ष्य मिलते हैं कि, मस्जिद से पहले वहां मंदिर था। तो टीम को यह भी बताना होगा कि, उस मंदिर की बनावट, उसकी शैली और उसका आकार कैसा था। इस मुकदमे में मूल रूप से, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर वकील विजय शंकर रस्तोगी जो भगवान शिव के वाद मित्र के तौर पर मौजूद हैं। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी और सेंट्रल वक्फ बोर्ड शामिल हैं।
कोर्ट के इस फैसले के बाद समाज में मौजूद मुस्लिम कट्टरपंथियों की नाराजगी देखने को मिली है। आज अपने मस्जिद को बचाने के लिए ये लोग, अलग – अलग दलीलें पेश करते हैं। हमारे मंदिर को खंडित कर ये मुस्लिम समाज अपना अधिकार स्थापित करने में लगी है। ये लोग तब कहां थे जब हमारे मंदिर को तोड़ कर इन्होंने अपने अल्लाह का घर बना लिया था।
इतिहास क्या है?
काशी यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग यहां काशी विश्वनाथ मंदिर में स्तिथ है। हमारे पुराणों, वेदों व स्कंद पुराण में इसका उल्लेख है कि, महाराजा विक्रमादित्य ने 200 वर्ष पूर्व, भगवान शिव के काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। जो आज वाराणसी में गंगा के निकट हिन्दुओं की आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। लेकिन आज जो मंदिर यहां स्थित है, वो मूल ज्योतिर्लिंग मंदिर नहीं है।
मुगल शासक, औरंगजेब ने वर्ष 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंस कर यहां, ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। जिसको पुनः स्थापित 1780 में मालवा की रानी, अहिल्या बाई ने करवाया था। जो ठीक ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में स्थित है।
सच्चाई क्या है?
ऐतिहासिक दस्तावेज मिले हैं को कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी मौजूद हैं। जो की औरंगजेब के शासन काल से ताल्लुक रखते हैं। जिसमें औरंगजेब ने अपने सूबेदार के नाम एक फरमान जारी किया था। जिसमें उसने मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया था।
इसके अतिरिक्त हिन्दू पक्ष का यह भी कहना है कि, मस्जिद की पश्चिमी दीवार हिन्दू कलाकृति का हिस्सा है। मस्जिद में कई ऐसी चीजें हैं, जिनसे मंदिर की झलक दिखाई देती है। मंदिर में नंदी की विशाल मूर्ति है, जिसकी दिशा मस्जिद की ओर है। जो यह संकेत देती है कि, वहां अवश्य ज्योतिर्लिंग था। जहां आज मस्जिद स्थित है।
मुद्दा क्या है?
हिन्दू पक्ष का दावा है कि, इस मस्जिद के स्थान पर, इसके गुंबद के नीचे स्वयंभू विश्वेश्वर का लिंग विराजमान है। लेकिन मुस्लिम पक्ष इस बात की मनाही करता है।
1809 में भी इस विषय को लेकर हिन्द – मुस्लिम समाज में दंगे – फसाद, मार – काट हो चुका है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि, वहां कोई मूल मंदिर नहीं है। ना कभी था। उस वक्त भी इस विषय पर कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया था।
1991 में वाराणसी के स्थायी वकील विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज की अदालत में इस मुद्दे को लेकर याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। लेकिन तब कोर्ट ने 15 Aug 1991 Places of Worship Act का हवाला देकर इस विवाद को स्थगित कर दिया था। इस कानून के अनुसार देश के धार्मिक स्थलों पर 15 Aug 1947 को जो स्थिति कायम थी, किसी भी पूजा स्थलों पर वही स्थिति रहेगी।
इसके बाद 2019 में मंदिर पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सम्पूर्ण मंदिर और मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का अनुरोध किया था। जिसका बाद में फिर एक बार 2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा विरोध प्रकट किया गया।
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इतिहास गवाह है कि, मुस्लिमों ने हमेशा हमारे मंदिरों की भव्यता, लोगों की उससे जुड़ी आस्था को हमेशा विध्वंस कर वहां अपने मस्जिदों का निर्माण करवाया है। काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा इसका एक और उदाहरण अयोध्या का राम मंदिर भी है, जिसे मुस्लिम समाज ने तोड़कर वहां अपने मस्जिद का निर्माण करवाया था। यह विषय मात्र मंदिर या मस्जिद का नहीं है यह विषय हिन्दू धर्म का और इस धर्म से जुड़े लोगों की आस्था का है। जिसका मुस्लिम समाज ने हमेशा मज़ाक बनाया है।
हालांकि कोर्ट के इस नए फैसले ने हिन्दू पक्षों में एक नई उम्मीद को जन्म दिया है। सदियों से हिन्दू – मुस्लिम संघर्ष का यह केंद्र जिसे मुगल शासक औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिया था, को जल्द ही नया फैसला मिलेगा। अब तक के मिले साक्ष्यों के मुताबिक, यहां भगवान शिव के मंदिर को तोड़ कर 1669 में मस्जिद अवश्य बनाई गई थी। लेकिन मुस्लिम समाज इस मत को मानने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। लेकिन भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण जल्द ही इस पर अपना नया और सही फैसला लेंगे।