जल्द खुलेगी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘कामधेनु चेयर’

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने एक 'कामधेनु चेयर' स्थापित करने का निर्णय लिया है जो गौ-पालन के सर्वोत्तम तरीकों को बढ़ावा देगी। इस संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक प्रस्ताव भी तैयार किया है और उसे मंजूरी के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेजा है।

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय । (Wikimedia Commons)

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने एक ‘कामधेनु चेयर’ स्थापित करने का निर्णय लिया है जो गौ-पालन के सर्वोत्तम तरीकों को बढ़ावा देगी। इस संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक प्रस्ताव भी तैयार किया है और उसे मंजूरी के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेजा है। इसके तहत छात्रों को गाय की देशी नस्ल के बारे में पढ़ाया जाएगा, साथ ही ग्रामीण आबादी को गायों के पालन-पोषण के क्षेत्र में आई तकनीकी प्रगति के बारे में बताया जाएगा। उन्हें इस क्षेत्र में बेहतर तरीके से काम करने और उत्पादकता बढ़ाने के तरीके बताते हुए प्रशिक्षित भी किया जाएगा।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय (एयू) में इस पहल का विचार कुलपति प्रो.संगीता श्रीवास्तव ने दिया है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष वल्लभभाई कथीरिया द्वारा संबोधित राष्ट्रीय वेबिनार में हिस्सा लेने के बाद उन्होंने यह विचार दिया है। यह वेबिनार यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) और अमेरिकन इंटरकांटिनेंटल यूनिवर्सिटी (एआईयू) के सहयोग से विश्वविद्यालयों में कामधेनु पीठ स्थापित करने के बारे में था।

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प्रो.संगीता श्रीवास्तव ने कहा, “यह चेयर हमारे ‘राष्ट्रीय खजाने’ की उचित देखभाल की दिशा में शहरी तकनीकी वृद्धि और हमारे ग्रामीण लोगों का ज्ञान बढ़ाने के बीच एक सेतु की तरह काम करेगी। गायों की आबादी बढ़ाने के लिए यह ज्ञान और शोध केवल प्रयागराज के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए नहीं है, बल्कि इससे पड़ोसी जिलों को भी फायदा होगा। जहां गायों की देसी नस्लों के कृषि, स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व के बारे में युवाओं को शिक्षित करने की जरूरत है।”

भारतीय मवेशी । (Wikimedia Commons)

इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा संस्थान होगा, जिसने कामधेनु चेयर की स्थापना के लिए पहल की है। एयू की जनसंपर्क अधिकारी जया कपूर ने कहा कि इसके तहत सभी गतिविधियों के संचालन की जिम्मेदारी एक विभाग को सौंपी जाएगी। एयू प्रशासन आने वाले दिनों में विभाग का नाम तय करेगा। यूजीसी भी इस पहल के लिए 1.5 करोड़ रुपये का अनुदान देगा। इसके जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में बूढ़ी गायों को बचाने का प्रयास भी किया जाएगा। (आईएएनएस )

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