देश के अधिकांश विद्यालयों में एनसीईआरटी की पुस्तकों से बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। किन्तु एनसीईआरटी के कई पाठ्यक्रमों पर सवालिया-निशान खड़े हो रहे हैं। यह मामला नया नहीं है जब एनसीईआरटी की पुस्तकों में भारतीय इतिहास पर आपत्ति जताई गई हो। यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि उन इतिहास की पुस्तकों में भारतीय राजाओं को दरकिनार कर मुगलिया बखान किया गया है और देश के बच्चों को अपने स्वर्णिम इतिहास से वंचित रखा गया है।
यह इस वजह से सवाल के कटघरे में है क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप का इतिहास एनसीईआरटी की पुस्तकों में चार पंक्तियों में समेट दिया गया और मुगलों की पुश्तों का बखान सम्पूर्ण पाठ के रूप में किया गया है। साथ ही पुस्तक में बाबर से लेकर औरंगजेब की बड़ी तस्वीरें मौजूद हैं किन्तु भारत के प्रतापी राजाओं का एक चित्र भी देखने को नहीं मिलता है।
बच्चों की पुस्तकों में यह तक दिया गया है कि मुगलों द्वारा हिन्दू मंदिर तोड़ने के पीछे क्या कारण था, और इसके साथ ही मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचार को छुपाने की कोशिश की जा रही है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारतीय हिन्दू राजाओं के इतिहास को एनसीईआरटी में कुछ पन्नों में समेट दिया गया किन्तु मुगलिया बखान को 70 से अधिक पन्नों में बताया गया है। साथ ही जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों के साथ लड़ाई लड़ी और एक अलग ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना की उसे इस पाठ्यपुस्तक में सिर्फ ‘स्थानीय सरकार’ के रूप में लिखा गया।
एनसीईआरटी के पुस्तक में ही ‘दलित’ शब्द का प्रयोग कई बार किया गया है, जब की केंद्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग ने इसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसी ही कई उदाहरण हैं जिससे यह सपष्ट होता है कि, कैसे एनसीईआरटी बच्चों को गलत इतिहास पढ़ा रहा है। जैसे, पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि अन्य धर्मों (मुसलमानों और ईसाइयों) का पालन करने वाले लोगों ने हिंदुओं के कारण स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया, जो कि सरासर गलत है। साथ ही वर्ष 2017 में गुजरात में 2002 में हुए दंगों को ‘गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगों’ वाले शीर्षक को हटाकर ‘गुजरात दंगा’ रखा गया। इस वजह से ही एनसीईआरटी के इतिहासकारों की मंशा पर सवाल उठते रहे हैं।
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एक रिपोर्ट के अनुसार कक्षा छठीं से लेकर सातवीं कक्षा तक कुल 582 पन्नों में से केवल 50 पन्नों में ही हिन्दुओं के विषय में बताया गया है और बाकि सब में मुगल या अंग्रेज। देश में समय-समय पर इस विषय पर आवाज उठाई गई है। किन्तु संज्ञान कुछ पर ही लिया गया। अब जरूरत यह है कि भारतीय इतिहास को बच्चों के समक्ष विस्तारपूर्वक रखा जाए अन्यथा नींव कमजोर रहेगी तो देश के खिलाफ और भी टूलकिट बनना तय है।