भारतीय सेना और उनमे शामिल सैनिकों ने सदैव भारत की आन-बान-शान के लिए दुश्मनों को मुँह तोड़ जवाब दिया है। चाहे वह 1947 में लड़ी गई Kashmir War हो या फिर 1999 में कारगिल में लड़ी गई भारत-पाकिस्तान युद्ध, Indian Army ने कभी भी भारत को झुकने नहीं दिया। आज भी जब चीन, लद्दाख क्षत्र में आँख तरेरता है तब भारतीय जवान सिंह गर्जना कर उन्हें झुकने पर मजबूर कर देते हैं। चीन अगर भारत के सपूतों पर कायराना रूप से हमला भी करता है तो हर एक-एक वीर दो-दो तीन-तीन चीनी सैनिकों को मारकर ही वीर-गति प्राप्त होता है।
वीर भूमि भारत ने सदैव शौर्य को जन्मा है। सोचिए! सेना में भर्ती हर एक सैनिक की माँ कितनी बलशाली होंगी, जिन्होंने अपने लाडले को देश की रक्षा के लिए राष्ट्र के नाम कर दिया। भारतीय सैनिकों के शौर्य का विश्व भी लोहा मानती है।
हर साल 15 जनवरी को Indian Army Day (भारतीय सेना दिवस) मनाया जाता है क्योंकि आज ही के दिन जनरल केएम करियप्पा 1949 में भारतीय सेना की कमान संभालने वाले पहले भारतीय बने थे। उन्होंने जनरल सर फ्रांसिस रॉबर्ट रॉय बुचर से पदभार को संभाला था जो हमारे देश की सेना के अंतिम अंग्रेजी कमांडर थे। Indian Army Day उन सभी वीरों के याद में भी मनाया जाता है जिन्होंने बिना किसी की नज़र आए देश की रक्षा की और देश के लिए अप्रतिम बलिदान दिया।
किन्तु, भारतीय सेना और शौर्य की बात उठती है तब हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत के ही राजनेताओं ने भारतीय सेना पर सवाल खड़ा किए थे। उन पर अंधाधुन राजनीतिक बाण छोड़े जा रहे थे। कुछ साल पहले हमे वह तस्वीरें भी दिखाई पड़ती थीं जिनमे कश्मीर में अलगावादियों के बहकावे में आए युवा सेना के जवानों पर पथराव करते थे। सरेआम सड़क पर उनसे मार-पीट और हमला करते थे।
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Article 370 हटने के बाद आज के कश्मीर में और दो साल पहले के कश्मीर में जमीन-आसमान का फर्क आया है। अब सेना कश्मीर में चुन-चुन कर आतंकवादियों को उनके अंजाम तक पहुँचा रही है और इसमें स्थानीय लोग भी बढ़-चढ़कर मदद कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार आर्टिकल 370 हटने के बाद आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो रहे युवाओं में 40% तक कटौती आई है। और कश्मीर के युवा भारी संख्या में सेना में भर्ती के लिए आगे आए हैं। जिसका श्रेय भी भारतीय सेना को ही जाता है क्योंकि सेना ने युवाओं को समझाने पर अधिक जोर दिया है। और जिन युवाओं ने अलगाववादियों के बहकावे में आकर आतंकवाद और बंदूक को अपनाया था उन्हें भी दुबारा घरवापसी और मुख्य धारा में वापस जुड़ने का मौका सेना ने ही दिया।
भारतीय सेना को रामधारी सिंह दिनकर की कविता के एक अंश से समझते हैं:
‘क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनीत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही। सच पूछो, तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की, सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।’