दिल्ली सरकार द्वारा की जा रही लापरवाही को हम लगातार रिपोर्ट कर रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल टीवी पर आते हैं, और अपने भोले अंदाज़ में दर्शकों को बताते हैं की दिल्ली वालों को चिंता करने की आवश्यकता बिलकुल भी नहीं है, क्यूंकी दिल्ली सरकार ने उनके इलाज़ का प्रबंध कर रखा है। इतना कह कर मुख्यमंत्री चले जाते हैं।
लेकिन ज़मीनी सच्चाई, मुख्यमंत्री के दिए जा रहे बयानों से बहुत अलग है। कई दिनों से दिल्ली के कोरोना पीड़ित मरीज़ों के परिजनों द्वारा शिकायतें लगातार आ रही है की सरकार टेस्ट में कमी कर रही है, कोरोना टेस्ट पॉज़िटिव आने के बाद भी, हॉस्पिटल एड्मिट नहीं कर रहा। मरीज़ों के लिए बेड की सुविधा उपलब्ध नहीं है। एक अस्पताल, मरीज़ों को दूसरे अस्पताल में रेफर करता है, तो दूसरे अस्पताल पहुँचने पर वहाँ से तीसरे अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। व्यवस्था के नाम पर मरीज़ों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। व्यवस्था पूर्ण रूप से चरमराई हुई है। लेकिन केजरीवाल कहते हैं, सब ठीक है।
अभी कल की ही बात है जब फ़ेसबूक पर विकास जैन नाम के व्यक्ति ने एक पोस्ट साझा कर कर अपनी आपबीती बताई। उन्होने बताया की किस तरह से ध्वस्त हो चुकी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण उन्होने अपने जीजाजी, नरेंद्र जैन को खो दिया। नरेंद्र जैन की उम्र 47 वर्ष थी।
अपने फ़ेसबूक पोस्ट में विकास जैन ने बताया की सांस लेने में हुई तकलीफ़ के कारण उन्होने अपने जीजाजी नरेंद्र जैन को अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की। लेकिन ईस्ट दिल्ली और पुष्पांजलि अस्पताल ने उन्हे भर्ती करने से मना कर दिया। आखिर में पटपड़गंज के मैक्स अस्पताल में उन्हे भर्ती कराया गया, जहां पर 1.25 लाख रुपये की तत्कालीन मांग की गयी, जिसे देने के बाद उन्हे एड्मिट किया गया। अगले दिन उनसे कोरोना सैंपल लिए गए, जिसकी रिपोर्ट उसके अगले दिन आई। रिपोर्ट में उन्हे कोरोना पॉज़िटिव बताया गया, लेकिन बेड की कमी होने का बहाना दे कर मैक्स अस्पताल ने उनका इलाज करने से मना कर दिया।
बक़ौल विकास जैन, मैक्स अस्पताल ने उनके जीजाजी को राजीव गांधी अस्पताल रेफर कर दिया। जब दिन के 1 बजे वे राजीव गांधी अस्पताल पहुंचे तो वहाँ भी डॉक्टरों ने आईसीयू बेड की कमी होने का बहाना दे कर भर्ती लेने से मना कर दिया, और वहाँ से उन्हे जीटीबी अस्पताल रेफर किया गया। आखिरकार शाम 5 बजे उन्हे जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया, और इलाज के नाम पर उन्हे बस ऑक्सीजन दिया गया। विकास जैन बताते हैं की तब तक उनकी हालत काफी बिगड़ चुकी थी, जिसके बाद शाम 7.30 बजे उनके जीजाजी ने दम तोड़ दिया। यहाँ तक की दाह संस्कार के वक़्त भी उन्हे पीपीई किट की व्यवस्था खुद करनी पड़ी।
इसके अलावा, 4 जून को भी ऐसी ही एक और खबर आई थी जब ट्वीटर पर अमरप्रीत नाम की महिला, अरविंद केजरीवाल से मदद की गुहार लगाती रही, लेकिन उन्हे सुनने वाला कोई नहीं था। 4 जून की सुबह अमरप्रीत ने ट्वीटर से जानकारी दी की उनके पिता नहीं रहे। अमरप्रीत के इस ट्वीट को अब तक 14000 से ज़्यादा लोग टिवीटर पर शेयर कर चुके हैं।
एक तरफ अमरप्रीत नाम की आम महिला, अपने मुख्यमंत्री से लगातार गुहार लगाती है लेकिन उनके आवाज़ को दरकिनार कर दिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ सगारिका घोष नाम की सेलेब्रिटी पत्रकार, अपने बाल कटवाने को लेकर पार्लर खोलने का ज़िक्र अपने ट्वीट में करती है, और उस ट्वीट पर मुख्यमंत्री केजरीवाल का जवाब मात्र 60 सेकंड में आ जाता है।
ये घोर विडम्बना है की ‘आम आदमी’ की सरकार होने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए आम लोगों के जीवन का महत्त्व शून्य के बराबर है, जबकि सेलेब्रिटी पत्रकारों के अनावश्यक बातों का जवाब वो महज 60 सेकंड के भीतर दे देते हैं। निंदनीय।
ये वो ख़बरें हैं जो वायरल होने की वजह से लोगों के नज़र में आ गयी है। लेकिन ऐसे ना जाने कितने मरीज़, प्रतिदिन सरकार की लापरवाही और अव्यवस्था का शिकार बन रहे होंगे। उस संख्या की गिनती भी कर पाना मुश्किल है।
अरविंद केजरीवाल ने किसी भी कोरोना मरीज़ को बिना ज़रूरत के अस्पताल ना जाने की हिदायत दी है। ये बात सुनने में ही हास्यास्पद है। मुख्यमंत्री को ये बात समझने की ज़रूरत है की कोई भी व्यक्ति शौक या घूमने के लिए नहीं बल्कि इलाज के मकसद से ही अस्पताल जाता है।
ध्यान देने वाली बात ये है की कोई भी न्यूज़ चैनल अरविंद केजरीवाल के अव्यवस्थित शासन के खिलाफ आक्रामक रूप से रिपोर्टिंग नहीं कर रहा है। यहाँ तक की मेनस्ट्रीम पत्रकार भी उनसे कड़े सवाल करने से बचते हुए नज़र आ रहे हैं। ग़ौरतलब है की प्रतिदिन, लगभग सभी न्यूज़ चैनलों और दिल्ली के अखबारों को केजरीवाल सरकार द्वारा करोड़ों का विज्ञापन दिया जा रहा है।
ये बात ज़ाहिर है की इन करोड़ों रुपये के बदले कोई भी चैनल उनसे सवाल कर अपने पेट पर लात मारने का जोख़िम नहीं उठाना चाहेगा।