देश की शीर्ष अदालत ने करीब चार सौ नब्बे साल पुराने अयोध्या विवाद में बीते साल नौ नवंबर को अपने फैसले में कहा कि अदालत आस्था नहीं बल्कि सबूतों के आधार पर फैसले सुनाती है। मामला मंदिर-मस्जिद से जुड़ा था इसलिए सवाल आस्था का भी था, लेकिन अदालत ने 40 दिनों की नियमित सुनवाई के दौरान किस प्रकार इतने पुराने मामले में साक्ष्यों की जांच की और किस प्रकार सदियों पुराने विवाद का समाधान निकाला, इसे टीवी पत्रकार प्रभाकर मिश्र ने इतिहास के आईने में बड़ी रोचकता के साथ कहानी के अंदाज में अपनी किताब ‘एक रूका हुआ फैसला’ में पेश किया है। किताब में यह काफी रोचक जिक्र है कि शीर्ष अदालत के फैसले में पैराग्राफ ‘786’ में मुस्लिम पक्ष का विवादित स्थल पर कब्जे का दावा साबित नहीं होने का जिक्र है। अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के सर्वसम्मत 929 पृष्ठों के फैसले में कुल 806 पैराग्राफ हैं जिनमें 786वें पैराग्राफ में अदालत ने विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष के कब्जा होने के दावे की विस्तार से समीक्षा की है और यही पैराग्राफ मामले में फैसले का मुख्य आधार है।
इसी तरह कई अन्य रोचक तथ्यों व प्रसंगों का इस किताब में उल्लेख किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को एक अहम सबूत माना गया है। एएसआई की रिपोर्ट के साक्ष्यों की महत्वपूर्ण जानकारी भी काफी दिलचस्प है।
किताब में अयोध्या विवाद मामले के संबंध में कई ऐसी जानकारी है जो पाठकों का रुचि बढ़ाती है। मसलन, दुनिया जिस विवाद को श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के नाम से जानती है, सुप्रीम कोर्ट में यह मुकदमा एम सिद्दिकी बनाम महंत सुरेश दास व अन्य के नाम से लड़ा गया। मामले में निचली अदालतों से शीर्ष अदालत तक मुकदमे के तमाम महत्वपूर्ण पहलुओं और पक्षकारों का विवरण भी क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
अयोध्या विवाद को इतिहास के आईने में पेश करते हुए लेखक ने मामले में चली सुनवाई के दौरान हिंदु पक्ष और मुस्लिम पक्ष की तरफ से दी गई दलीलों के अहम पहलुओं को इस किताब में समेटने की कोशिश की है। मसलन, हिंदु और मुस्लिम दोनों पक्षों में अंतर्विरोध का जिक्र। लेखक बताते हैं कि ऐसा नहीं था कि कोर्ट में हिंदु पक्ष ही आपस में लड़ रहे थे। मुसलमानों के बीच का शिया-सुन्नी विवाद भी अयोध्या मामले में दिखता रहा।
अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई के दौरान देश में चली सियासत के कारण टलती रही सुनवाई और इस दौरान हुई बयानबाजी भी जिक्र ‘एक रूका हुआ फैसला’ में किया गया है। किताब में झांसी की रानी का निमोर्ही अखाड़ा से संबंध का रोचक जिक्र है। वहीं, मामले में पक्षकार हाशिम अंसारी और महंत रामचंद्र दास की मित्रता को भी दिलचस्प तरीके से पेश किया गया है।
बीते डेढ़ दशक से सुप्रीम कोर्ट की रिपोटिर्ंग कर रहे प्रभाकर मिश्र अयोध्या विवाद पर आए फैसले से पहले मामले में हुई सुनवाई के चश्मदीद रहे हैं। कानून के छात्र रहे मिश्र ने मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गहराई से अध्ययन कर उसके महत्वपूर्ण व रोचक पहलुओं को अपनी किताब में कहानी की तरह पेश करने की कोशिश की है।
सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या मामले की चली आखिरी 40 दिनों की सुनवाई और उसके बाद आए फैसले पर आधारित किताब ‘एक रुका हुआ फैसला’ पेंगुइन प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। किताब में सरल शब्दों में मुकदमे से जुड़ी जानकारी को कहानी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश काफी सराहनीय है।(आईएएनएस)
(न्यूज़ग्राम किसी भी प्रकार से इस किताब के प्रचार में शामिल नहीं है।)