वरदान से कम नहीं यूपी सरकार की “ओडीओपी” योजना !

उत्तर प्रदेश सरकार की बहुआयामी योजना एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) के तहत राज्य के दस्तकारों और शिल्पकारों के उत्पादों को विशिष्ट पहचान दिलाने संग उनकी आमदनी को बढ़ा कर चेहरों पर मुस्कान बिखेरी है। पूर्वी यूपी की सुनहरी शकरकंद और बुंदेलखंड (झांसी) स्ट्राबेरी के बाद अब कुशीनगर जनपद में केले के रेशे व केले के कई तरह के उत्पाद ओडीओपी योजना के जरिए अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर व्यापार में मिठास घोल रहे हैं। ओडीओपी योजना के तहत जनपद कुशीनगर में केले के तने, रेशे, फल, पत्तियों से बनने वाले विभिन्न उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिए योगी सरकार की नीतियों ने दस्तकारों, शिल्पकारों व किसानों की आय को रफ्तार दी है।

यूपी के कुशीनगर जिले के सेवरही ब्लॉक के हरिहरपुर गांव के रहने वाले 36 वर्षीय रवि प्रसाद ने ओडीओपी योजना के तहत जिले में केले के रेशे से तमाम तरह के उत्पाद बनाने का काम शुरू किया। अब तक 450 महिलाओं और 60 पुरुषों को इस काम से जोड़कर उनको रोजगार की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है।

रवि ने बताया कि ओडीओपी योजना शिल्पियों व दस्तकारों के लिए वरदान साबित हुई है। यूपी सरकार ने गांव के हुनर को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का काम किया है। प्रदेश में आयोजित किए गए हुनर हाट के जरिए हम लोगों की आमदनी को पंख लगे हैं।

कुशीनगर में लगभग 9000 हेक्टेयर में केले की खेती की जा रही है। जिसमें केले की खेती से 9,400 किसान और 500 हस्तशिल्पी जुड़े हुए हैं। जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केन्द्र की ओर से एक जनपद एक उत्पाद के तहत केला रेशा व केला उत्पाद के लिए जनपद के करीबन 500 लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जिसमें 150 लोगों को केले से उत्पाद बनाने व 350 लोगों को केले के रेशे से बने उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। बता दें कि कुशीनगर में केले के तने, रेशे से करीबन 20 से 25 तरह के उत्पादों को तैयार किया जाता है।

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पीएम रोजगार सृजन योजना के तहत पांच लाख रुपए का ऋण लेने के बाद व्यापार शुरू करने वाले रवि ने बताया कि केले के तने के रेशे से बने इन उत्पादों की मांग दूसरे देशों और दूसरे प्रदेशों एवं शहरों मसलन अहमदाबाद, पटना, तामलिनाडु, सूरत समेत ऑस्ट्रेलिया से इन उत्पादों के कई आर्डर मिलें हैं। लखनऊ में आयोजित हुनर हाट में ओडीओपी योजना के तहत स्टॉल लगाने का मौका मिला, जहां इन उत्पादों से करीबन चार लाख की बिक्री हुई। इसके साथ ही केले से बने इन उत्पादों के करीबन दो लाख के आर्डर भी मिले।

रवि ने बताया कि, “कोरोना काल के बाद भी इस योजना से कारीगरों को सबल मिला है। आज अपने ही गांव में युवाओं, महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। अब तक मैं 500 से ज्यादा लोगों को केले के रेशों से कई तरह के उत्पाद तैयार करने का प्रशिक्षण दे चुका हूं। इन उत्पादों के साथ ही केले के अपशिष्ट से जैविक खाद बनाता हूं, जिससे हम लोगों की फसल 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।”

उन्होंने बताया कि कोरोना काल के बाद तमाम परेशानियों से जूझ रहे दूसरे जिलों के लोगों ने ट्रेनिंग ली और आज वो अपना व्यापार सफलतापूर्वक कर रहे हैं।

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जिस केले के तने को किसान बेकार समझकर फेंक देते हैं, उस बेकार तने के रेशों से उत्पाद बना रवि निर्यात कर रहें हैं। केले के रेशे से बैग, चप्पल, कालीन, मैट बना रहें हैं जो लोगों को खूब पसंद आ रहें हैं। उन्होंने बताया कि केले के रेशे से बनी कालीन की मांग सबसे ज्यादा है। एक मेले में ढाई से तीन लाख रुपए तक की बिक्री हो जाती है, जिसमें सवा से डेढ़ लाख तक का मुनाफा होता है। इस रेशे के उत्पाद बनाने के लिए छोटा स्टार्टअप ढाई लाख व बड़े स्टार्टअप में पांच लाख रुपए लग जाते हैं। आमदनी के अनुसार लागत छह महीनें या एक साल में निकल आती है। (आईएएनएस)

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