भारतीय समाज के लिए सोशल मीडिया एक खतरा !

राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद को लगता है कि सोशल मीडिया और कुछ भारतीय चैनल भी समाज में एक दरार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

social media a threat to indian society
समाज में सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर लोगों का भरोसा लगातार गिरता जा रहा है। (Unsplash)

By – अर्चना शर्मा

राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद को लगता है कि सोशल मीडिया और टीवी चैनल समाज में दरार पैदा कर रहे हैं। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अहमद ने हाल ही में 91 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स के साथ मिलकर सुदर्शन न्यूज के ‘यूपीएससी जिहाद’ प्रोमो के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी।

“हमने संबंधित अधिकारियों को एक पत्र लिखा था, क्योंकि हम 91 लोग हिंदू या मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। हम भारतीय सिविल सर्वेंट थे, जो चाहते थे कि यूपीएससी जैसी शीर्ष संस्थान का अपमान नहीं होना चाहिए। टीवी चैनलों की तो इसे लेकर ज्यादा जिम्मेदारी बनती है क्योंकि उनके प्रसारण को कई घरों में देखा जाता है।”

राजस्थान में पहले मुस्लिम मुख्य सचिव रहे अहमद इस बात को खारिज करते हैं कि भारत में हिंदुत्व अपना कब्जा जमा रहा है, लेकिन वो कहते हैं कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया ऐसे दावे फैला रहे हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है।

उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया पर जहर उगलने वाले बहुत लोग हैं और उनके फॉलोअर्स भी बहुत हैं। लेकिन एक शिक्षित समाज के रूप में, हमें खड़े होना चाहिए और ऐसे पोस्ट और टीवी चैनलों से बचना चाहिए।”

सेवानिवृत्ति के बाद पूर्व मुख्य सचिव शहर की भगदड़ से दूर एक लंबी-चौड़ी जमीन पर फैले आलीशान विला में अपना जीवन बिता रहे हैं। यहां बड़ी तादाद में पेड़ लगे हैं। शहरी जीवन से दूर रहने के बावजूद वे भारतीय जनता पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है। उन्होंने कहा कि कुछ टीवी चैनल भी समाज में जहर फैला रहे हैं।

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सलाउद्दीन अहमद Salauddin ahmed
राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद। (Facebook)

आईएएनएस से बात करते हुए अहमद कहते हैं, “कुछ भारतीय चैनल भी समाज में एक दरार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। अलग-अलग कैडरों के हमारे कई दोस्त इस मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए साथ आए हैं।”

अहमद उन 101 सिविल सर्वेंट में शामिल थे जिन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नरों को एक पत्र लिखा था, जिसमें कोरोना प्रसार के दौरान हुए तबलीगी जमात विवाद के कारण देश के मुस्लिमों को उत्पीड़ित किया गया था।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें वास्तव में लगता है कि मुसलमानों के खिलाफ किसी भी तरह का पूर्वाग्रह है। इस पर उन्होंने कहा, “भारत ऐसा देश है, जो कई धर्मों का प्रतिनिधित्व करता है और जाति से संबंधित मुद्दे अभी भी हमारे समाज में मजबूती से जमे हुए हैं। आरक्षण और जातियों के पक्षपाती रवैये पर सभी जातियों को लेकर सामान्य रूप से चर्चा की जा रही है लेकिन एक विशेष समुदाय के खिलाफ ऐसा नहीं हैं।”

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उन्होंने आगे कहा, “मुझे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में सर्वश्रेष्ठ पद मिले और भगवा पार्टी के तहत काम करना अजीब नहीं लगा। लेकिन हो सकता है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी के साथ काम करना मुश्किल हो गया हो, क्योंकि चीजें बदल रही हैं।”

मुस्लिमों की स्थिति को लेकर उन्होंने कहा, “शिक्षित होने की आवश्यकता है। मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक दुर्दशा बदल सकती है अगर वे अपने दम पर खड़े होकर शिक्षित होना सीखें।”

1975 बैच के इस भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी का कहना है कि उनके पिता ने उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया था क्योंकि उन दिनों वह आईएएस फैक्ट्री माना जाता था। वहीं उनकी मां उन्हें राज्य के मुख्य सचिव के रूप में देखना चाहती थीं, उनका यह सपना पूरा हुआ। (आईएएनएस)

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