उस्ताद अलाउद्दीन खान को उनके जन्मदिन पर किसी ने याद नहीं किया

बाबा अलाउद्दीन खान को आठ अक्टूबर को उनके जन्मदिन के मौके पर किसी ने याद नहीं किया। इस बात का मलाल हर संगीतप्रेमी को है।

Baba Allauddin Khan बाबा अलाउद्दीन खान
बाबा अलाउद्दीन खान (मध्य ) और उनके दो अन्य साथी। (Wikimedia Commons)

By – संदीप पौराणिक

संगीत की दुनिया में शायद ही ऐसा कोई हो जो मैहर के बाबा अलाउद्दीन खान को न जानता हो, क्योंकि अलाउद्दीन खान संगीत जगत के ऐसे समुंदर थे जिससे संगीत की अलग-अलग धाराएं निकली।

मध्यप्रदेश के सतना जिले का मैहर कस्बा देश के अन्य कस्बों जैसा ही है। देश और दुनिया में इस कस्बे की पहचान मां शारदा देवी के मंदिर और संगीतज्ञ बाबा अलाउद्दीन खान के कारण है। अलाउद्दीन खान का जन्म भले ही मैहर में न हुआ हो मगर उन्होंने मैहर को अपनी कर्मभूमि बनाया और यहां ऐसे रचे-बसे कि बाबा मैहर के ही होकर रह गए।

मध्यप्रदेश में उनके नाम पर अलाउद्दीन खान कला और संस्कृति अकादमी है तो मैहर में महाविद्यालय। इसके बावजूद आठ अक्टूबर को उनके जन्मदिन के मौके पर किसी ने उन्हें याद नहीं किया। इस बात का मलाल हर संगीतप्रेमी को है। अकादमी की ओर से यही कहा जा रहा है कि कोरोना काल के कारण किसी भी तरह का आयोजन संभव नहीं था।

Baba Allauddin Khan बाबा अलाउद्दीन खान
अलाउद्दीन खान। (Wikimedia Commons)

अलाउद्दीन खान के परिजन आरिफ तनवीर का कहना है कि, अलाउद्दीन खान साहब सहित अन्य संगीतज्ञों की याद में महाविद्यालय विश्वविद्यालय के रूप में इमारतें तो खड़ी कर दी गई मगर उनकी याद में कोई स्थाई कार्यक्रम नहीं होता। यही कारण है कि लाखों करोड़ों रुपए इमारतों पर खर्च किए जाने के बावजूद देश में दूसरा अलाउद्दीन खान, भीमसेन जोशी, रविशंकर पैदा नहीं हो पाया है। सरकार का भारतीय संगीतज्ञ और संगीत के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया चिंताजनक है।

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Baba Allauddin Khan बाबा अलाउद्दीन खान
उस्ताद अलाउद्दीन खान, ढाका में 1955 के संगीत समारोह में सम्मिलित हुए थे। (Wikimedia Commons)

कहा जाता है कि अलाउददीन खान के संगीत कला से प्रभावित होकर मैहर के महाराजा बृजनाथ सिंह बीसवीं सदी की शुरुआत में उन्हें मैहर लेकर आए थे। अलाउददीन राजा के दरबार में नियमित रूप से वाद्य यंत्र बजाते और गायन तो करते ही थे, साथ ही जब तक सक्षम रहे हर रोज सीढ़ियां चढ़कर मां शारदा देवी के मंदिर दर्शन करने जाते थे और वहां भी भजन गाते थे।

Baba Allauddin Khan House बाबा अलाउद्दीन खान
उस्ताद अलाउद्दीन खान का घर। (Wikimedia Commons)

अलाउददीन खान के अनोखे आर्केस्ट्रा मैहर वाद्य वृंद (मैहर बैंड) की स्थापना का भी किस्सा है। लोग बताते हैं कि वर्ष 1918-19 में मैहर में प्लेग फैला था, इस महामारी के चलते बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी और कई बच्चे अनाथ हो गए थे। इन बच्चों को उन्होंने इकट्ठा किया और उनकी क्षमता और रूचि के अनुसार वाद्य बजाने की शिक्षा दी और उसके बाद ही यह वाद्य वृंद अस्तित्व में आया। वर्तमान में मैहर में स्थित अलाउद्दीन कला महाविद्यालय में यह वाद्य वृंद भी है इसमें महाविद्यालय के छात्र भी शामिल हैं। यहां अलाउद्दीन की याद में एक संग्रहालय भी है जिसमें तमाम वाद्य यंत्रों को रखा गया है।

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Baba Allauddin Khan बाबा अलाउद्दीन खान
बाबा अलाउद्दीन खान 20 वीं शताब्दी के महानतम संगीत शिक्षकों में से एक थे। (Wikimedia Commons)

सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार नंदलाल सिंह का कहना है कि, उनका नाम जरूर अलाउद्दीन खान था मगर वे सांप्रदायिक सद्भाव की बेजोड़ मिसाल थे। वास्तव में वे संगीत के प्रतिरुप और अवतार थे, क्योंकि संगीत की कोई जाति-धर्म नहीं होती। उनके साम्प्रदायिक सद्भाव को इसी से समझा जा सकता है कि उनके घर (मकान) के दो नाम हैं – मदीना भवन और शांति कुटीर।

अलाउददीन खान ने संगीत परंपरा में एक नई शुरुआत की, संभवतः मैहर घराना भारतीय संगीत का इकलौता ऐसा घराना है जिसमें पीढ़ी हस्तांतरण किसी एक परिवार के सदस्यों की बजाय गुरु शिष्य परंपरा के जरिए होता है।

विश्व स्तर पर प्रसिद्ध दिल्ली के कलाकार और पद्मश्री से सम्मानित परेश मैती ने मैहर में 34 फीट ऊंची, 20 फीट लंबी और 8 फीट चौड़ी मूर्तिकला बनाई है जो मैहर के लिए एक कलात्मक श्रद्धांजलि है। ये मूर्तिकला पुण्यभूमि-मां शारदा शक्तिपथ और उस्ताद अलाउद्दीन खान की कर्मभूमि को समर्पित है। (आईएएनएस)

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