दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ज़फरुल इस्लाम खान द्वारा 28 अप्रैल को दी गयी धमकी को बहुत ही गम्भीरता से लेने कि ज़रूरत है। दिल्ली सरकार को इस पर संज्ञान लेते हुए तत्काल प्रभाव से ज़फरुल इस्लाम को बर्खास्त कर देना चाहिए।
ज़फरुल इस्लाम ने झूठ फैलाने के साथ साथ विश्व के सामने भारत की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने का भी काम किया है। ‘इस्लामिक’ देशों से भारत के खिलाफ शिकायत की धमकी देना, अपने ही देश के विरुद्ध एक जंग की आग़ाज़ करने जैसा है, अर्थात राष्ट्रद्रोह है।
ये बात अलग है की जिस कुवैत के भरोसे, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अपनी अकड़ दिखा रहे हैं वो देश किसी भी हाल में भारत के आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी कर भारत से अपने अच्छे संबंध खराब करना नहीं चाहेगा। ‘इस्लामिक’ मुल्कों से शिकायत की धमकी बेहद ही बचकानी हरकत तो है ही, लेकिन इसके साथ साथ खतरनाक भी है।
ऐसी धमकियों का क्या अर्थ निकाला जा सकता है? इसके पीछे का मकसद क्या है?
मोदी सरकार के आने के कुछ साल में ही मुस्लिम बुद्धिजीवि, मुस्लिम पत्रकार, वामपंथी विचारधारा के समर्थक, कुछ चुने हुए फ़िल्म उद्योग के लोग, डिजिटल मीडिया का एक धड़ा लगातार ऐसे मुद्दों को उछालने की कोशिश करता रहा है, जिससे एक डर का माहौल तैयार हो सके और ऐसा लगने लगे मानो भारत अब मुसलमानों के रहने लायक देश नहीं रह गया है।
ये चुनिंदा लोगों द्वारा मुसलमानो को लगातार भारत की नरेंद्र मोदी सरकार में डरा हुआ बताया गया। छोटी से छोटी घटनाओं को समप्रदयिक रंग दिया गया। ऐसा लगातार देखा गया की किसी भी घटना में मरने वाला मुसलमान हो और मारने वाला हिन्दू हो तो ऐसी घटना को दिन रात कवरेज दी गयी। लेकिन अगर हालात इसके विपरीत हो तो चुप्पी साध ली गयी।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार जीतने वाली भाजपा और उसकी विचारधारा की मजबूती को तोड़ने के लिए एक तय तरीके से इस्लाम विरोधी माहौल दिखाने की कोशिश में एक हिन्दू विरोधी माहौल को जन्म दिया गया। हिन्दू विरोधी ताकतों को उकसाया गया, उसे शक्ति दी गयी। खैर, ये एक अलग चर्चा का विषय है।
भारत की एक मुसलमान विरोधी मुल्क के रूप में छवि पेश करने की कोशिश
ये पूरी कोशिश इस उम्मीद में हुई की दुनिया के सामने भारत की एक मुसलमान विरोधी मुल्क के रूप में छवि पेश की जा सके। एक कोशिश इस उम्मीद में की दुनिया के इस्लामिक से लेकर शक्तिशाली मुल्कों तक को ये लगने लगे की भारतीय मुसलमान, नरेंद्र मोदी सरकार के पैरों तले रौंदा जा रहा है। एक प्रधानमंत्री को तानाशाह बता कर मुसलमानों के नरसंघार की झूठी कहानी गढ़ी गयी। मुसलमानों की स्तिथि को ऐसा पेश किया गया मानो वो दुनिया से अपनी सलामती की भीख मांग रहे हों। जब की हालात इसके विपरीत है।
बीते 6 साल में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब सरकार द्वारा धर्म के नाम पर मुसलमानो के साथ भेदभाव किया गया हो। सरकार द्वारा शुरू की गयी हर योजना में मुसलमानों को शामिल ही नही किया जाता बल्कि मुसलमानों के लिए अलग योजनाए भी बनाई जाती हैं। मुस्लिम छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृति योजनाओं के तहत सरकार करोड़ो खर्च कर बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने का भी काम करती है।
मापदंड अलग क्यों?
ये संभव है की सबा सौ करोड़ के आबादी वाले इस देश के किसी कोने में कभी कोई हिंसात्मक घटना हो जाए जिसमे शामिल लोग अलग अलग धर्म के हों। लेकिन ऐसी घटनाओं से ‘पूरा मुसलमान धर्म खतरे में है’ कहना सरासर झूठ और बेबुनियाद हैं। लेकिन अगर इसको ही मापदंड मान लिया जाए तो हिन्दू के मरने पर ऐसी भाषा का प्रयोग करने वालों के जुबान को लकवा क्यों मार जाता है?
ऐसी कई घटनाएं हुई जब हिन्दू और मुस्लिम दोनो हिंसा का शिकार हुए लेकिन लोगों में दोनो के लिए प्रतिक्रियाएँ अलग अलग देखी गयी। चाहे कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार कर भगा देने की घटना हो या गोधरा के बेकसूर कारसेवकों से भरी ट्रेन के डिब्बे को जला देने की घटना हो। गोधरा कांड के बाद फैले दंगे हर किसी को याद है, लेकिन उन दंगों की शरुवात जहां से हुई थी, उसमे ज़िक्र करने में लोग आज भी हिचकिचाते हैं।
ऐसी कई घटनाएं-
- कठुआ में एक बच्ची का बलात्कार होता है। पूरे इंसानियत को शर्मशार कर देने वाली ये घटना को भी समप्रदयिक रंग दे कर पूरे हिन्दू धर्म को बदनाम करने की कोशिश की गयी थी। इस घटना पर बहुत लंबी कवरेज हुई थी, होनी भी चाहिए थी, इसीलिए ये घटना हर किसी के ज़हन में कैद होगी, लेकिन ऐसी कितनी घटना आपको याद है जब मौलवियों द्वारा बलात्कार की घटना पर ऐसा कवरेज किया गया हो। नही होगा याद, क्योंकि कवरेज भी धर्म देख कर दिया जाता है, जिसकी वजह से ऐसे कितने हैं जिन्हें इंसाफ नहीं मिल पाता।
- हाल ही में, सीएए(CAA) के विरोध में हुए आंदोलन से फैली दिल्ली हिंसा की बात कर लें, जहां विरोध के नाम पर एक समुदाय विशेष द्वारा पूरे शहर को जला कर राख कर दिया गया, जहां आम आदमी पार्टी के पार्षद, ताहिर हुसैन के घर की छत से पत्थर का ढेर, एसिड की थैली, और पेट्रोल बम बरामद हुए। आम लोगों से लेकर पुलिस वालों तक को आंदोलन की आड़ में पीट पीट कर मार दिया गया, जहां अंकित शर्मा को चाकू से सैकड़ो बार गोद कर लाश को नाले में फेंक दिया गया, लेकिन फिर भी इसे हिंदुओं द्वारा किया गया मुस्लिम विरोधी दंगा बताया गया।
- अभी हाल ही में कोरोना के शुरवाती दौर में एक फ़र्ज़ी हिन्दू संगठन द्वारा गौमूत्र पार्टी रखने पर जम कर बवाल काटा गया। हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हंसा गया और मज़ाक उड़ाया गया था तो सब ठीक था। लेकिन तब्लीग़ियों द्वारा भारी मात्रा में संक्रमण फैलने को लेकर लगे इलज़ाम और थूक फेंकने से लेकर अश्लील व्यवहार करने पर उसके विरोध को इस्लामोफोबिया बताया गया।
- यही लोग संतो की निर्मम हत्या पर चुप रहे। इनके मुँह से निंदा के चार शब्द निकलवाने के लिए लोगों को इनके मुँह में उंगली डालनी पड़ी थी। लेकिन कुछ वक़्त पहले चोरी के आरोप में पकड़ाए तबरेज़ नाम के व्यक्ति की लीनचिंग पर इन्ही लोगों ने ‘देश में मुसलमानो के लिए भय का माहौल’ घोषित कर दिया था।
- हैदराबद में एक भगवा झंडा लगा देख किसी की भावनाएं आहत हो जाती है, और उस भवना की कद्र करते हुए कार्यवाही तक होती है। चलो यहां आपकी बात मान लेता हूँ की भारत में असहिष्णुता बढ़ गयी है, नहीं तो किसी को झंडे से क्या तकलीफ होगी?
ऐसे दोहरे मापदंड जनता में गलत संदेश देते आये हैं।
ताहिर हुसैन, उमर खालिद, शर्जील इमाम खतरे में है या इस्लाम खतरे में है?
लेकिन फिर आप कहते हो की मुसलमानो के साथ गलत हो रहा है, और इसकी शिकायत आप अरब देशों से कर देंगे? आपको क्या लगता है, भारत, अरब देशों की मेहरबानी पर पलने वाला मुल्क है?
दिक्कत ये है की धर्म के ठेकेदार की बातों में आ कर कुछ बेवकूफ लोग एक अपराधी पर लगे इल्ज़ाम को पूरे कौम पर लगा इल्ज़ाम मान लेते हैं। और नेता से लेकर कुख्यात अपराधी तक इस प्रचलन का पूरा फायदा उठाते हैं। इन पर सरकार, या पुलिस की कोई भी कार्यवाही को ये इस्लाम पर कार्यवाही या इस्लाम को बदनाम करने की साज़िश बताते है। फिर कुछ सोशल मीडिया के योद्धा, और कुछ पत्रकार से लेकर अभिनेता तक इस मुद्दे को सरकार के खिलाफ जम कर भुनाते हैं।
आप दिल्ली दंगो से लेकर जामिया मिलिया में हुई पुलिस कार्यवाही पर सोचिए। आप शाहीन बाग़ पर सोचिये। असम को अलग करने की बात करने वाला शारजील इमाम से लेकर दिल्ली दंगो का आरोपी ताहिर हुसैन पर भी सोचिए। हर बार क्या हुआ, क्या दलील दी गयी, आपको क्या पाठ पढ़ाया गया? आप सोचिए की ताहिर हुसैन, उमर खालिद, शर्जील इमाम खतरे में है या इस्लाम खतरे में है?
एक भ्रम की स्तिथि पैदा की गयी है
एक भ्रम की स्तिथि पैदा की गयी है, जिसमे आम मुसलमानो को भी ऐसा लगने लगा है की देश में डर का माहौल है, और धर्म के नाम पर उनको भी कभी भी या कहीं भी मार दिया जाएगा।
जब की सच इसके विपरीत है। ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप्प से बाहर आ कर अपने आस पास नज़र डालिये और दूर तक देखिए। ये बनाया हुआ डर सच में मौजूद नहीं है। इसे एक मकसद के तहत मुसलमानों के जहन में डाला गया है। एक सोची समझी और तैयारी के साथ बार बार लगातार ऐसी घटनाओ को समप्रदयिक रंग दिया गया है। एक तय तरीके से कुछ चैनलों द्वारा बार बार इसे दिखाया गया। फेसबुक, ट्विटर पर कुछ चुनिंदा न्यूज़ पोर्टल द्वारा बार बार इस पर आर्टिकल छापे गए, जिससे इस सोच को और बल मिलता रहा। कॉमेडियन, बुद्धिजीवी और फ़िल्म उद्योग में बैठे कुछ लोगों ने इस सोच में जहर डाल कर, डर को और भयावह बनाने का काम किया है।
यही है ज़फरुल इस्लाम के ‘Persecution Of Muslims In India’ का सच।