राजनीतिक पालने में इधर से उधर उछल-कूद करते नेता लोग!

चुनाव आते-आते नेताओं में बगावती तेवर तेज होने शुरू हो गए हैं। एक तरफ कैप्टेन और सिध्दू वहीं दूसरी तरफ गेहलोत और पायलट।

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Navjot Singh Siddhu Captain Amrinder Singh Sachin Pilot Ashok Gehlot Punjab Congress Rajasthan Congress
(NewsGramHindi, साभार: Wikimedia Commons)

राजनीति में एक दल से दूसरे दल में जाने का कमोवेश चलता रहता है। यदि नेताओं को चुनाव के दौरान अपनी पार्टी की हार दिखाई देती है तो वह इस पाले से उस पाले में कूद जाते हैं, और यदि नेताओं की बात नहीं मानी जाती है तो वह भी बगावती तेवर दिखाने में पीछे नहीं हटते। नवीनतम उदाहरण हैं, पश्चिम बंगाल चुनाव के समय तृणमूल से भाजपा में आए शुभेंदु अधिकारी का। जिन्होंने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को हराया।

बहरहाल, वर्तमान में उत्तर प्रदेश में विधान-सभा चुनाव निकट आ रहे हैं और दल-बदल का खेल शुरू भी हो गया है। कांग्रेस पार्टी और एक वक्त पर राहुल गाँधी के साथी नेता जितिन प्रसाद ने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का हाथ थाम लिया है। जितिन प्रसाद ने दो टूक कहा कि पार्टी आलाकमान उनकी बात को दरकिनार कर रही थी, और उनके ओहदे को गंभीरता से नहीं ले रही थी जस वजह से उन्होंने यह फैसला लिया। जितिन प्रसाद उत्तर-प्रदेश में बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं, और इस बात का फायदा भाजपा यूपी चुनाव में जरूर उठाने वाली है। आखिर कोई भी राजनीतिक दल कितना भी विकास पर चुनाव की बात कहे, उन्हें जीतने के लिए जाति और धर्म का सहारा लेना ही पड़ता है।

पंजाब की गहमा-गहमी

यह तो थी भाजपा की बात, किन्तु कांग्रेस खेमे में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है। एक तरफ पंजाब में गहमा-गहमी वहीं दूसरी तरफ राजस्थान में बगावती चिंगारी को हल्का धीमा कर दिया गया है। पहले बात करें पंजाब की तो, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिध्दू ने अलग ही बगावती सुर बुलंद किया हुआ है, जिसके बाद राज्य के सभी विधायकों को दिल्ली बुला कर उनसे बात की गई। अगले साल यानि 2022 पंजाब में भी विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। अब सिध्दू अपना वर्चस्व और मौजूदगी दर्ज कराने के लिए बगावती अखाड़े में कूद पड़े हैं।

आपको बता दें की नवजोत सिंह सिध्दू वर्ष 2017 में भाजपा से कांग्रेस में आए थे जिसके बाद उन्होंने 2017 में ही पंजाब विधानसभा चुनाव में अमृतसर ‘पूर्व’ सीट से जीतकर अपनी मौजूदगी दर्ज की थी। किन्तु इसके बाद से ही मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और सिध्दू के बीच में खटपट की खबरें आती रही हैं, जो चुनाव आते-आते और तेज हो गई है। अब पंजाब में कैप्टेन और सिध्दू के बीच जमकर पोस्टर-वॉर चल रहे हैं। ‘कैप्टेन कौन’ के पोस्टर के जवाब में ‘कैप्टेन एक ही होता है’ जैसे पोस्टर पंजाब की सड़कों पर देखे जा रहे हैं। आखिर यह राजनीतिक गर्मी चुनाव तक रहने वाली है या कांग्रेस आलाकमान इस विषय पर नतीजे निकालने के मूड में है या नहीं? यह तो समय बताएगा।

राजस्थान में भी गर्मी कम नहीं हुई है!
Ashok gehlot and Sachin Pilot
सचिन पायलट एंड अशोक गेहलोत।(Wikimedia Commons)

राजस्थान की राजनीति की लौ लालटेन में जल रही बत्ती के समान है, कभी बगावती चिंगारी उठने लगती है तो कभी अंदर ही अंदर जलती रहती है। जब-जब पुराने साथी भाजपा का हाथ थामते हैं तब-तब पायलट को बगावती तेवर दिखाने का हौसला मिलता और फिर कुछ दिन सुर्खियों में बने रहने के बाद वह तेवर सुस्त पड़ने लगता है। हाल ही में कांग्रेस पार्टी के पुराने सदस्यों में से एक सचिन पायलट और उनके गुट के नेताओं ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राजस्थान कांग्रेस पर उनकी शर्तें न मानने का आरोप लगाया।

इससे पहले भी साल 2020 में सचिन पायलट ने राजस्थान कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला था। उस समय पायलट और गहलोत के बीच हुई तीखी बयानबाजी को सबने देखा। मुख्यमंत्री गहलोत ने मीडिया के सामने तो पायलट को ‘निकम्मा नाकारा’ तक कह दिया था। इस बगावती लौ को मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट से बात कर, एक साल के लिए भुजा दिया था। किन्तु, उस लौ को जितिन प्रसाद के जाने से 2021 में फिर चिंगारी मिली और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस बार भी 2020 की तरह प्रियंका गांधी वाड्रा ने ही सचिन पायलट को फोन कर डिजास्टर मैनेजमेंट का काम किया।

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अब सोचने की बात यह है कि पायलट की तल्खियां किसी साथी के पार्टी छोड़ने के बाद ही क्यों जागती हैं? पिछले साल ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का हाथ थामा तब पायलट कांग्रेस से नाराज हुए। अब जब जितिन प्रसाद ने भाजपा का हाथ थामा तब भी सचिन पायलट के तेवर बदले। बहरहाल मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अशोक गहलोत पर फोन टैपिंग करवाने के आरोप भी लग रहे हैं और पहले भी उनपर सचिन पायलट और उनके समर्थकों पर फोन टैपिंग के जरिए निगरानी रखने का आरोप लगा था। भाजपा ने इस फोन टैपिंग को ‘राजस्थान में अघोषित आपातकाल’ बताया है।

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