#Northeast Matters: पूर्वोत्तर भारत के इतिहास से अछूता “NCERT”

पूर्वोत्तर भारत के लोगों के साथ यह भेदभाव, उन्हें अलग - अलग नाम से "चिंकी, चाइनीज" कहकर अपमानित करना यह देश के लगभग हर क्षेत्रों में पाया जाता है।

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पूर्वोत्तर भारत के इतिहास की जानकारी एनसीईआरटी भी बच्चों को नहीं देता है। (NewsGramHindi, साभार: Wikimedia Commons)

‘ए चैप्टर फॉर एनई’ और ‘नॉर्थ ईस्ट मैटर्स’ (‘A chapter for NE’ and ‘Northeast Matters’) आप सोच रहे होंगे आखिर यह मुद्दा ट्विटर पर इतना गरमाया हुआ क्यों है? आखिर यह मुद्दा क्या है? 

हाल ही में पंजाब के एक 22 साल के यूट्यूबर पारस सिंह ने अपने YouTube चैनल पर एक वीडियो पोस्ट किया। जिसमें उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के पूर्व लोकसभा सांसद और कांग्रेस विधायक निनॉन्ग एरिंग (Ninong Ering) के खिलाफ नस्लवादी टिप्पणी की है। अपने वीडियो में पारस ने कहा कि, पूर्व लोकसभा सांसद एरिंग एक भारतीय की तरह नहीं दिखते हैं। उनका नाम भी विदेशी लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि, अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के लोग भी भारतीय की तरह नहीं दिखते हैं और यह भारत का नहीं चीन का हिस्सा लगता है। हालांकि यूट्यूबर पारस सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 दिन की न्यायिक हिरासत में भी रखा गया।

जिसके बाद से ही ट्विटर के माध्यम से इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है। पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) के कई छात्र संगठन और देश भर के छात्र संगठनों ने एक अभियान शुरू किया है। जिसमें राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण की पाठ्य पुस्तकों में पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रों के बारे में अध्याय शामिल करने की मांग को उठाया जा रहा है। इस अभियान का मुद्दा पूर्वोत्तर भारत के लोगों के प्रति नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने और पूर्वोत्तर भारत के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। उनके द्वारा सालों से सहन किया जा रहा नस्लीय भेदभाव का मुद्दा को उजागर करना है। इस अभियान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से संबंधित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और कांग्रेस छात्र-संघ नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) शामिल हैं। 

पूर्वोत्तर भारत के लोगों के साथ यह नस्लीय भेदभाव (Racial discrimination) का मुद्दा नया नहीं है। ICSSR (भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद) के द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि, COVID-19 के प्रकोप के बीच पूर्वोत्तर भारत के नागरिकों को बड़े स्तर पर नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। इन लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया, उन्हें परेशान किया गया, यहां तक की पूर्वोत्तर भारत के लोगों को अपमानजनक रूप से “कोरोना वायरस” कहकर भी पुकारा गया। 

पूर्वोत्तर भारत के लोगों के साथ यह भेदभाव, उन्हें अलग – अलग नाम से चिंकी, चाइनीज कहकर अपमानित करना यह देश के लगभग हर क्षेत्रों में पाया जाता है। यहां के छात्र जब अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं, तो वहां उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मकान किराए पर मिलना मुश्किल हो जाता है। भोजनालयों जैसी सामूहिक जगहों पर ही उन्हें कई परेशानी का सामना करना पड़ता है। 

यह हम सभी जानते हैं कि, एनसीईआरटी के बहुत से पन्ने हमारे भारत के इतिहास से अछूते हैं। बदलते वक्त और समाज में उजागर होते अहम मुद्दों के अनुसार NCERT को अपने पाठ्यक्रम में बदलाव करने की आवश्यकता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृतियों के बारे में तो खूब बखान किया जाता है। लेकिन उनके इतिहास के बारे में आज भी बहुत कम लोगों को जानकारी होगी। पूर्वोत्तर भारत के इतिहास की जानकारी एनसीईआरटी भी बच्चों को नहीं देता है। 

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हालांकि यह भी सच है कि, NCERT में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के बारे में जानकारी दिए जाने से यह नस्लीय भेदभाव पूरी तरह से खत्म नहीं होगा। लेकिन यह भी सच है कि, इस कदम से लोगों के अंदर जो पूर्वोत्तर भारत के नागरिकों के बारे में धारणाएं हैं उसे कम अवश्य किया जा सकता है। हमें यह भी समझना होगा कि, यह मुद्दा केवल पूर्वोत्तर भारत के राज्यों का नहीं है। यह मुद्दा सभी के लिए जरूरी है। कोई भी कानून तभी सफल होगा जब यह स्वाभाविक रूप से हमारे मस्तिष्क में होगा। 

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