असम में सरकार की ओर से संचालित सभी मदरसों को समाप्त कर दिया जाएगा और 30 दिसंबर को राज्य विधानसभा द्वारा इस आशय का कानून पारित किए जाने के बाद एक अप्रैल से 620 से अधिक ऐसे संस्थानों को सामान्य स्कूलों में परिवर्तित कर दिया जाएगा। यह बात असम के शिक्षा और वित्तमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने बुधवार को कही। शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि असम के राज्यपाल जगदीश मुखी ने ‘द असम रीपलिंग एक्ट 2020’ के लिए अपनी सहमति दे दी है और उक्त अधिनियम के अमल में आने के साथ एक अप्रैल से 620 से अधिक मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदल दिया जाएगा।
हालांकि राज्य सरकार ने फिलहाल असम के सैकड़ों निजी तौर पर संचालित मदरसों के बारे में कोई विशेष निर्णय नहीं लिया है।
सरमा ने इस कदम को ऐतिहासिक और प्रगतिशील करार देते हुए एक ट्वीट में कहा, “खुशी है कि असम निरसन अधिनियम 2020 को माननीय राज्यपाल की सहमति प्राप्त हो गई है और यह प्रभावी हो गया है। मदरसा एजुकेशन प्रांतीयकरण अधिनियम, 1995 और असम मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2018 निरस्त कर दिया गया है। सभी सरकारी मदरसे सामान्य शिक्षा संस्थान के रूप में चलेंगे।”
कांग्रेस और ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सहित विपक्षी दलों के विरोध के बीच, राज्य विधानसभा ने असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम, 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षणिक संस्थानों का पुन: संगठन) अधिनियम, 2018 को समाप्त करने का प्रस्ताव रखते हुए पिछले साल 30 दिसंबर को द असम रीपलिंग एक्ट 2020 पारित किया था।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि अधिनियम के लागू होने से असम में राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड भी भंग हो जाएगा।
शिक्षा मंत्री ने पहले कहा था कि सरकार द्वारा संचालित 97 संस्कृत टोल्स (वैदिक शिक्षा केंद्र) भी बंद हो जाएंगे, क्योंकि सरकार धार्मिक शिक्षा को निधि नहीं दे सकती, क्योंकि यह एक धर्मनिरपेक्ष इकाई है।
उन्होंने कहा था कि ये 97 संस्कृत टोल कुमार भास्करवर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय को सौंपे जाएंगे। इन्हें शिक्षा और अनुसंधान के केंद्रों में परिवर्तित किया जाएगा, जहां भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रवाद का अध्ययन किया जाएगा।
यह भी पढ़ें: “अल्पसंख्यक का रोना रोने वाले अल्पसंख्यक नहीं”
सरमा ने मीडिया से कहा कि बिना धर्म देखे भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रवाद को इन परिवर्तित शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाएगा, जिससे असम इस थीम पर इन विषयों को पढ़ाने वाला पहला भारतीय राज्य बन जाएगा।
इससे पहले, सरमा ने कहा था कि राज्य सरकार मदरसों को चलाने के लिए सालाना 260 करोड़ रुपये खर्च कर रही है और सरकार धार्मिक शिक्षा के लिए सार्वजनिक धन खर्च नहीं कर सकती।(आईएएनएस)