असम और केरल में चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस जमकर कोशिश कर रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भी पश्चिम बंगाल को छोड़कर उन सभी राज्यों में प्रचार कर रहे हैं, जहां चुनाव नजदीक हैं। जाहिर है लगातार अपना आधार खो रही कांग्रेस के लिए लड़ाईयां बहुत मुश्किल हैं लेकिन उतनी ही ज्यादा अहम भी हैं।
बीते कुछ सालों में कांग्रेस की स्थिति पर नजर डालें तो 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से ही उच्च सदन में कांग्रेस सदस्यों की संख्या घटती जा रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद तो यह स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है। जहां भाजपा एक के बाद एक राज्य जीतती जा रही है, वहीं कांग्रेस अब सिमटकर 4 राज्यों तक रह गई है। 2 राज्यों में वह गठबंधन के साथ सत्ता में है।
ऐसे हालातों को लेकर पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को उच्च सदन में अपनी अच्छी स्थिति बनाए रखने के लिए राज्यों के चुनाव जीतने पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि लोकसभा में तो कांग्रेस की स्थिति और भी खराब है, क्योंकि राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली से तो लोकसभा में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है।
सदनों में कांग्रेस के कुल सदस्यों की संख्या 100 से भी कम हो चुकी है और राज्यसभा में तो संख्या के मामले में भाजपा और कांग्रेस के बीच का अंतराल अब तक के शीर्ष पर है। उच्च सदन में भाजपा के 92 सदस्य हैं और उम्मीद है कि गुजरात के उपचुनावों में वह 2 और सीटें पा लेगी, जबकि कांग्रेस के सदन में केवल 36 सदस्य हैं।
सकारात्मक रवैया रखते हुए बात करें तो यदि पार्टी अच्छी तरह प्रदर्शन करे तो इस साल 5 राज्यों में होने वाले चुनाव काफी-कुछ बदल सकते हैं। जैसे – तमिलनाडु में 18 राज्यसभा सीटें हैं, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 16, केरल में 9, असम में 7 और पुदुचेरी में 1 सीट है। इसके अलावा यदि कांग्रेस असम और केरल में चुनाव जीतती है, तो उसके पास उच्च सदन में अपनी संख्या बढ़ाने का मौका रहेगा। हालांकि, इतने सब के बाद भी वह संख्या में भाजपा से पीछे ही रहेगी। वहीं दोनों सदनों में अपने सदस्यों की अच्छी संख्या के कारण भाजपा के लिए विधेयक पारित कराना आसान होता है। हालांकि विपक्ष आरोप लगाता रहता है कि भाजपा विधेयकों को पारित करने में सही प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही है। कृषि कानूनों के मामले में तो इस बात को लेकर भाजपा पर जमकर निशाना साधा गया।
कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि 2004 के आम चुनावों से पहले 14 राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी जो अब घटकर 4 राज्यों में रह गई है। यदि पार्टी जीवित रहना चाहती है, तो उसे क्षेत्रीय नेताओं पर फोकस करना होगा और राज्यों के चुनाव जीतने होंगे। क्योंकि पार्टी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे अहम राज्यों को क्षेत्रीय पार्टियों के हाथों खो चुकी है। पूर्वोत्तर में भी इसने उन सभी राज्यों को खो दिया है जिन्हें कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था।
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जमीन से आधार खोती कांग्रेस के नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि राज्यों के नेताओं को आगे बढ़ाया जाए। साथ ही वे मांग कर रहे हैं कि संगठन को मजबूत करने के लिए ब्लॉक लेवल से लेकर सीडब्ल्यूसी लेवल तक चुनाए कराए जाएं। (आईएएनएस)