राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को ऐसी न्यायिक व्यवस्था लागू करने पर जोर दिया, जिसमें न्याय सुनिश्चित करने के लिए न्याय दिए जाने में देरी के कारणों को समय पर दूर किया जा सके। कोविंद ने कहा कि न्यायिक प्रणाली का उद्देश्य केवल विवादों को हल करना नहीं है, बल्कि न्याय को बनाए रखना भी है।
राष्ट्रपति कोविंद ने यह बात ऑल इंडिया स्टेट ज्यूडीशियल एकेडमीज डायरेक्टर्स र्रिटीट के उद्घाटन कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान कही।
उन्होंने कहा, “न्याय व्यवस्था का उद्देश्य केवल विवादों को सुलझाना नहीं, बल्कि न्याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय, न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है। ऐसा नहीं है कि न्याय में विलंब केवल न्यायालय की कार्य-प्रणाली या व्यवस्था की कमी से ही होता हो।”
अदालती कार्रवाई और प्रक्रिया में मौजूद इन loopholes का निराकरण करने में न्यायपालिका को, सजग रहते हुए proactive भूमिका निभानी आवश्यक हो जाती है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले innovations को अपनाकर और best practices को साझा करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 6, 2021
न्यायिक प्रणाली में प्रौद्योगिकी के तेजी से वृद्धि को देखते हुए, राष्ट्रपति ने न्याय के त्वरित वितरण के लिए सभी न्यायिक प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी के उपयोग को शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, “त्वरित न्याय के लिए यह आवश्यक है कि व्यापक न्यायिक प्रशिक्षण के अलावा, हमारी न्यायिक प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी के उपयोग को शुरू करने की आवश्यकता है।”
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, “मामलों की बढ़ती संख्या के कारण, सही परिप्रेक्ष्य में मुद्दों को समझना और थोड़े समय में सटीक निर्णय लेना आवश्यक हो जाता है।”
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देश में 18,000 से अधिक अदालतों को कम्प्यूटरीकृत किया गया है। जनवरी तक, लॉकडाउन अवधि सहित, देशभर में आभासी (वर्चुअल) अदालतों में लगभग 76 लाख मामलों की सुनवाई हुई है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड, विशिष्ट पहचान कोड और क्यूआर कोड जैसी पहल को वैश्विक स्तर पर सराहा जा रहा है।
कोविंद ने कहा, “इस तकनीकी हस्तक्षेप का एक और लाभ यह है कि इन पहलों के कारण कागजों का उपयोग कम हो गया है, जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद करता है।”
उन्होंने माना कि निचली न्यायपालिका देश की न्यायिक प्रणाली का मूल है और साथ ही यह भी उल्लेख किया कि उसमें प्रवेश से पहले सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले कानून के छात्रों को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियां कर रही हैं।
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राष्ट्रपति ने कहा, “हम भारत के लोग न्यायपालिका से उच्च उम्मीदें रखते हैं। समाज न्यायाधीशों से ज्ञानवान, विवेकवान, शीलवान, मतिमान और निष्पक्ष होने की अपेक्षा करता है।”
उन्होंने कहा, “न्याय-प्रशासन में संख्या से अधिक महत्व गुणवत्ता को दिया जाता है और इन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए न्यायिक कौशल की ट्रैनिंग, ज्ञान और तकनीक को अपडेट करते रहने तथा लगातार बदल रही दुनिया की समुचित समझ बहुत जरूरी होती है। इस प्रकार इंडक्शन लेवल और इन-सर्विस ट्रेनिंग के माध्यम से इन अपेक्षाओं को पूरा करने में राज्य न्यायिक अकादमियों की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है।” ( AK आईएएनएस )