By- Shantanoo Mishra
जिसे प्रेम था देशभक्ति से
जिसे प्रेम स्वतंत्र हिन्द से,
वह ‘केसरी’ मतवाले थे
वह ‘लाल’ भारत के रखवाले थे।।
‘पंजाब केसरी’ एवं परतंत्र भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) जी का आज 156वां जन्म दिवस है। सायमन कमीशन के विरोध में जिन्होंने युवाओं और देश के जनता को आक्रोश से भर दिया वह लाला जी ही थे। लाला जी ने न केवल स्वतंत्रता के आंदलन में भाग लिया बल्कि पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना भी की जो आज भी सक्रीय है। लाल-बाल-पाल यह वही तिकड़ी है जिन्होंने भारत को पूर्ण स्वतंत्र बनाने की मांग तेज़ की थी।
आंदोलन के वक्त जब अंग्रेजों ने आंदोलनकारी एवं लाला जी पर लाठी चार्ज किया था तब सभी को काफी चोटें आई थीं, जिसमे लाला जी को भी गंभीर चोट आई। जब लाला जी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच लड़ रहे थे तब उन्होंने एक क्रांतिकारी उपदेश दिया था कि “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।”
लाला लाजपत राय के मृत्यु के बाद ही देश में क्रांति की लौ प्रज्वलित हुई थी और साथ ही शहीद चंद्र शेखर आज़ाद, शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने आज़ादी की आग को आगे बढ़ाई थी। लेकिन क्या इन क्रांतिकारियों के द्वारा दिए गए बलिदान को यह देश सही ढंग से सवार रहा है? क्योंकि 26 जनवरी को दिल्ली में लाल किले पर जो हुआ, वह देश के सम्मान में अस्वीकार्य है। लाल किले पर किसी भी धर्म के झंडे को फहराना देश के प्रति अपमान है।
और तो और सुरक्षा में तैनात जवानों पर जिस बर्बरता से प्रहार किया गया उससे कोई भी यही पूछेगा कि “क्या यह किसान है?” क्या अन्नदाता किसी की जान लेने पर उतारू हो सकता है? जुलूस पर इसलिए भी सवाल खड़े किए गए क्योंकि इन दंगाइयों ने सभी नियमों और शर्तों का उल्लंघन किया। और लाल किले पर हुआ वह तो असहनीय था।
लाला लाजपत राय ने जिस क्रांति को युवाओं में प्रज्वलित किया था, उसका नतीजा है यह स्वतंत्र भारत। किन्तु, आज के युवाओं और किसान नेताओं ने जिस उद्दंडता को आंदोलन का नाम दिया हुआ है उससे न केवल देश के अन्य किसानों का नाम ख़राब हो रहा है बल्कि देश की छवि पर लांछन लग रहे हैं।
भारत के उन सपूतों ने ऐसे विभाजित भारत की कल्पना नहीं की थी .जहाँ मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ा जाता है समाज मौन धारण किए बैठा रहता है। लव जिहाद का काला धंधा जोरों पर हो और जब राज्य सरकारें उसके खिलाफ कानून लेकर आती है तो विपक्षी उन कानूनों पर सवाल उठाने से नहीं कतराते। मनोरंजन के नाम पर भी ‘तांडव’ हो रहा है। धर्मनिपेक्षता की शह में अपने ही धर्म और देश को गाली देना यह कहाँ तक मान्य है? यह भारत न तो लाला जी ने सोचा होगा न उन सभी क्रांतिकारियों ने, जिन्होंने इस देश स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।