किसानों की आमदनी को दोगुनी करने का लक्ष्य : रमेश चंद

मोदी सरकार की ओर से शुरू किए गए कृषि सुधार और किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य के अलावा खेती-किसानी से जुड़े कुछ अन्य मसलों पर आईएएनएस से विशेष बातचीत में नीति आयोग (NITI Aayog) के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि नये कृषि कानूनों पर तकरार से करीब एक साल बेकार चला गया। हालांकि किसानों (Farmers) की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए अभी दो साल का वक्त है क्योंकि अभी वित्त वर्ष 2021-22 आरंभ ही हुआ है।

नई दिल्ली (New Delhi), 4 अप्रैल (आईएएनएस)। कृषि सुधार पर विरोध अगर जल्द समाप्त हो और नये कानून पर अमल हो तो देश के किसानों की आमदनी तय समय के भीतर दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करने में कोई मुश्किल नहीं होगा। ऐसा मानना है कृषि अर्थशास्त्र के जानकार और भारत सरकार का पॉलिसी थिंक टैंक, नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद का।

उन्होंने कहा कि 2016 में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य की घोषणा की गई थी तब उसका आधार वर्ष 2015-16 रखा गया था। सात साल में यानी 2022-23 तक इस लक्ष्य को हासिल करना है।

बकौल रमेश चंद (Ramesh Chand) आंध्रप्रदेश (Andra Pardesh), तेलंगाना (Telangana), मध्यप्रदेश (Madhya Pardesh), महाराष्ट्र (Maharastra) समेत बिहार और उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र में माकूल प्रगति हुई है। कुछ राज्यों को छोड़कर बाकी में इस लक्ष्य को तय समय के भीतर हासिल करना मुश्किल नहीं है।

खाद्य एवं कृषि नीति से जुड़ी अहम समितियों की अध्यक्षता कर चुके प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है कि कृषि सुधार की राह में रूकावटें आई हैं। उन्हें जल्द दूर करके अगर नये कृषि कानूनों पर मुक्कमल अमल हो तो निर्धारित समय के भीतर किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर जो खाका तैयार किया है| (सांकेतिक चित्र, File Photo)

किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर जो खाका तैयार किया है उस पर प्रकाशित एक पुस्तक के पन्ने पटलते हुए उन्होंने कहा, किसानों की आय बढ़ाने के जो पांच-छह स्रोतों का जिक्र किया गया उनमें एक इंस्ट्ीट्यूशनल रिफॉॅर्म्स है। इसके तहत प्राइवेट मंडी, डायरेक्ट मार्केंटिंग, कांट्रैक्ट फामिर्ंग, ई-ट्रेटिंग, डायेक्ट सेलिंग टू द कंज्यूमर्स बाई फार्मर्स की बात कही गई है।

मतलब नये कृषि कानूनों (Agricultural laws) में किसानों के लिए सीधे उपभोक्ताओं या प्रसंस्करणकतार्ओं को उपज बेचने समेत जो भी प्रावधान किए गए हैं उसका खाका पहले ही तैयार कर लिया गया था, क्योंकि ये किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य से जुड़े हुए हैं।

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद की माने तो नये कृषि कानूनों को अमल में लाए बगैर किसानों (Farmers) को हासिल करने की परिकल्पना नहीं की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र की विपणन व्यवस्था में सुधार लाने के लिए इससे पहले मॉडल एग्रीकल्चर एक्ट (Agriculture Act) लाया गया जिसको अगर सभी राज्यों में अमल में लाया जाता और जरूरी सुधार किए गए होते तो नये कानून बनाने की जरूरत ही नहीं होती।

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आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें एक शर्त लगा दी गई है कि पेरीशेबल यानी जल्द खराब होने वाली आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दाम में औसत से 100 फीसदी इजाफा होने पर स्टॉक लिमिट लगेगी और गैर-पेरीशेबल के दाम में 50 फीसदी की वृद्धि होने पर। उन्होंने कहा कि इसमें किसानों और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखा गया है, इसलिए किसान अगर इसका विरोध कर रहे हैं तो हैरानी होती है। नये कानूनों में कॉरपोरेट को फायदा दिलाने की कोशिश के आरोपों से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि नये कानूनों में उन्हीं बातों को शामिल किया गया है जिन पर बीते करीब दो दशकों से विचार-विमर्श चल रहा था और कृषि विशेषज्ञों से लेकर पूर्व की सरकारों ने भी इस तरह के सुधारों को जरूरी बताया था। उन्होंने कहा कि कांट्रैक्ट फामिर्ंग और कॉरपोरेट फामिर्ंग में अंतर समझना होगा क्योंकि नये कानून में किसानों की जमीन को लेकर किसी भी प्रकार के अनुबंध का जिक्र नहीं है और किसान अपनी जमीन पर खुद ही खेती करेंगे। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में कांट्रैक्ट फामिर्ंग चली आ रही है, इसलिए इसको लेकर भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है। (आईएएनएस-SM)
 

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