क्या आदिवासी हिन्दू नहीं?

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हारवर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए नए विवाद को जन्म दे दिया है। उन्होंने झारखंड के आदिवासियों को हिन्दू नहीं माना है।

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासियों को हिन्दू मानने से इंकार कर दिया है।(सांकेतिक चित्र, Pixabay)

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन(Hemant Soren) ने हारवर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए नए विवाद को जन्म दे दिया है। उन्होंने झारखंड(Jharkhand) के आदिवासियों को हिन्दू नहीं माना है। उन्होंने ने कहा कि आदिवासी न कभी हिन्दू थे और न होंगे। इस बयान को भाजपा की विचारधारा पर कटाक्ष माना जा रहा है। किन्तु क्या है असल मामला? क्या आदिवासी हिन्दू नहीं है? या सोरेन अपनी राजनीति को और चमकाने के लिए यह बयान दिया है?

आपको ज्ञात होगा कि भारतीय सनातन संस्कृति को पालन और उस पर अमल करने वाला हिन्दू कहलाता है। झारखंड(Jharkhand) के भी आदिवासी वह सभी रीति-रिवाज़ों का पालन करते हैं जो कहीं न कहीं हिन्दू धर्म(Hindu Dharma) से मेल खाता है। वह प्रकृति को अपना संरक्षक एवं उसी को देवता मानते हैं, जिसे हिन्दू संस्कृति में भी देखा जा सकता है। जिसका साक्ष्य है वेदों में संरचित यह श्लोक:

“यत्ते भूमे विखनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु। मां ते मर्म विमृग्वरी या ते हृदयमर्पितम।।”

इस श्लोक का भाव यह है कि “हे पृथ्वी माँ! मैं जिस प्रकार भी आपको क्षति या हानि पहुंचाता हूँ, वह जल्द से जल्द ठीक हो जाए।”

वेद आदिवासी Veda Hindu and Adivasi

आदि एवं वासी: ‘आदिवासी’ यह शब्द का अर्थ है कि एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाली निवासी जिनका उस क्षेत्र से संबंध प्राचीन काल से रहा हो। यदि इस अर्थ को मान लिया जाए तो यह भी सोचने की जरूरत है कि भारत वर्ष हिन्दू राष्ट्र था, जिसका मतलब यहाँ के सभी निवासी हिन्दू थे। तब इन आदिवासियों को क्यों अलग धर्म का बताया जा रहा है?

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अब जब आदिवासी एवं उनके हिन्दू होने का मुद्दा उठा ही है, तो यह मुद्दा भी उठना चाहिए कि देश के कई भागों में मिशनरी घूम-घूम कर इन आदिवासियों और पिछड़े वर्ग पर निशाना साध धर्मांतरण का गोरखधंधा चला रहे हैं। फिर यह सवाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से किया जाना चाहिए कि आदिवासी बहुल क्षेत्रो में धर्मांतरण क्यों पैर पसार रहा है? और सरकार इस विषय पर क्या करवाई कर रही है?

भारत में आदिवासी जनसंख्या है 8.6% और इसी वजह से उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया है किन्तु एक आदिवासी छात्र को समाज में जगह बनाने के लिए आज भी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है, वहीं तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग आसानी से हासिल कर लेता है। बहरहाल, अभी यह मुद्दा और कितना तूल पकड़ता है यह आने वाला समय ही बताएगा। 

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