जम्मू में गुलाम नबी आजाद के ‘एकजुटता प्रदर्शन’ के बाद कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं (जी-23) और राहुल गांधी के बीच दरार खुलकर सामने आ गई है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि पार्टी चौराहे (किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में) पर है और इसे अब इस बात का चुनाव करना होगा कि या तो यह असंतुष्टों को शांत करे या उनके बिना आगे बढ़ने का फैसला करे। शनिवार को विशेष रूप से आजाद के कार्यक्रम के बाद टकराव का स्तर यह दर्शाता है कि राहुल गांधी के लिए पार्टी तंत्र के भीतर राह कठिन हो रही है।
सूत्रों का कहना है कि जम्मू के कार्यकर्म के बाद असंतुष्ट अब कुरुक्षेत्र में एक सार्वजनिक बैठक की योजना बना रहे हैं। साथ ही वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं से समर्थन हासिल करने के लिए देश भर में गैर-राजनीतिक मंचों पर भी बैठक करने की योजना बना रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि यद्यपि कांग्रेस के असंतुष्टों ने टकराव का रास्ता अख्तियार किया है, लेकिन अधिक लोगों को इसमें शामिल होने से रोकना कठिन होगा क्योंकि वे इस तरह की और बैठकें आयोजित करने की योजना बना रहे हैं। स्पष्ट संकेत है कि यह राहुल गांधी के खिलाफ खुला विद्रोह है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि 2019 के आम चुनावों के बाद नेताओं से जो कुछ भी करने के लिए कहा गया था, उन्होंने किया। लेकिन, बिहार चुनावों में उन्हें नजरअंदाज किया गया और कैम्पिंग या परामर्श प्रक्रिया में आमंत्रित नहीं किया गया।
आनंद शर्मा, जो असंतुष्टों में सबसे अधिक मुखर हैं, ने कहा था कि वे पार्टी के “किरायेदार नहीं बल्कि सह-मालिक” हैं और कई लोग इस बात पर जोर देते हैं कि वे पार्टी छोड़ने वाले नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि आज हम जहां हैं, वहां पहुंचने के लिए ज्यादातर नेताओं ने बहुत मेहनत की है। हममें से कोई भी खिड़की के माध्यम से नहीं आया है, हम सभी दरवाजे से पार्टी में आए हैं।
बहरहाल, कांग्रेस जल्दबाजी में नहीं है और इन नेताओं को शांत करने के लिए एक विकल्प चुनने के लिए सतर्कता से आगे बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टी ने समस्या के समाधान की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है। पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता ने उन्हें ‘सम्मानित’ कहकर संबोधित किया है। असंतुष्टों ने उस दिन को अपनी ताकत दिखाने के लिए चुना जब राहुल गांधी तमिलनाडु में चुनाव प्रचार कर रहे थे।
कांग्रेस ने हालांकि नेताओं के योगदान को सराहा, मगर साथ ही यह भी कहा कि उन्हें इस वक्त उन्हें पांच राज्यों के चुनावों पर ध्यान केंद्रित कर पार्टी के लिए काम करना चाहिए। लेकिन, असंतुष्ट खेमे के सूत्रों ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है और किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय के लिए आगे बढ़ने से पहले पार्टी में कोई विचार-विमर्श और आम सहमति का प्रयास नहीं किया जा रहा है।
जब से टीम राहुल ने अहम निर्णय लेने की बागडोर संभाली है तब से पार्टी के तीन दशक तक महासचिव रह चुके आजाद जैसे नेता को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है।
कांग्रेस ने नेताओं को शांत करने और उन्हें संदेश देने के लिए अभिषेक मनु सिंघवी से आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि मैं बहुत सम्मान के साथ कहूंगा कि कांग्रेस के लिए सबसे अच्छा योगदान केवल आपस में ही सक्रिय होना नहीं है, बल्कि पांच राज्यों के मौजूदा चुनावों के मद्देनजर पार्टी के विभिन्न ‘अभियानों’ में सक्रिय होना है।
संसद में विपक्ष के नेता रहे गुलाम नबी आजाद के साथ ‘एकजुटता कार्यक्रम’ में शामिल कपिल सिब्बल, राज बब्बर, मनीष तिवारी सहित कई असंतुष्ट नेताओं ने जम्मू में पार्टी पर प्रहार करने का विकल्प चुना। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वे पार्टी के कमजोर होने से दुखी हैं।
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आनंद शर्मा ने उन लोगों पर प्रहार किया जो इन नेताओं के आलोचक थे। उन्होंने कहा कि मैंने कियी को भी मुझे यह बताने का अधिकार नहीं दिया है कि हम कांग्रेस के लोग हैं या नहीं। किसी के पास यह अधिकार नहीं है। हम पार्टी का निर्माण करेंगे, हम इसे मजबूत करेंगे और कांग्रेस की ताकत व एकता में विश्वास करेंगे।
चुनावी हार के कारण कठिन समय का सामना कर रही कांग्रेस को अब पार्टी को आंतरिक रूप से भी लड़ना होगा। राहुल गांधी की “उत्तर-दक्षिण” वाली टिप्पणी पर भाजपा द्वारा प्रहार किए जाने के बाद उन्हें अपनी पार्टी के भीतर भी आलोचना झेलनी पड़ी और ‘जी-23’ असंतुष्ट भी राहुल पर प्रहार करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे।(आईएएनएस- ShM)