हाल ही में अभी विश्व श्रवण दिवस (Hearing Day) मनाया गया था। प्रत्येक वर्ष यह बहरेपन की हानि से बचने के लिए एक विश्व जागरूकता के रूप में मनाया जाता है। हर साल की तरफ इस साल भी डब्ल्यूएचओ (WHO) ने जेनेवा में अपने मुख्यालय में एक वार्षिक ” विश्व श्रवण दिवस’ आयोजित किया था।
इस दौरान डब्ल्यूएचओ (WHO) ने भविष्य में ना सुन पाने की एक भयानक समस्या की तरफ इशारा किया है। डब्ल्यूएचओ (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक आज वैश्विक स्तर पर 1.5 बिलियन से भी अधिक लोग बहरेपन की समस्या से पीड़ित हैं।डब्ल्यूएचओ (WHO) के अधिकारीयों ने चेतावनी दी है कि, अभी इस ना सुन पाने की समस्या को लेकर उचित कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक लगभग 2.5 बिलियन लोग ना सुन पाने की समस्या से गुज़र रहे होंगे।
इसके अतिरिक्त डब्ल्यूएचओ (WHO) ने अपनी रिपोर्ट में बताया की ना सुन पाने की समस्या के कारण हर साल वेश्विक अर्थवयवस्था का लगभग $1 बिलियन लागत खर्च होती है। उन्होंने बताया कि न सुन पाने की समस्या ना केवल व्यक्तिगत है बल्कि आर्थिक रूप से भी बड़ी है। बहुत से लोग जो ना सुन पाने की समस्या से जूझ रहे हैं उन्हें समाज में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हें अपना अधिकांश जीवन अलगाव में व्यतीत करना पड़ता है। समाज में कुंठित जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
डब्ल्यूएचओ (WHO) की कान और श्रवण की तकनीकी अधिकारी, शैली चड्ढा ने कहा कि , ना सुन पाने की समस्याओं को कई हद तक रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि बहरेपन की समस्या कई कारणों से होती है, जैसे : हेडफोन और ईयरफोन पर काफी तेज़ ध्वनि में संगीत सुनना। किसी कार्यालय में जोरो शोरो के कारण तथा अन्य कारणों में कानों में संक्रमण की समस्या, रुबेला, मेनिनजाइटिस आदि। ये सभी कुछ ऐसे कारण है जो बहरेपन की समस्या को जन्म देते हैं लेकिन इन सभी को , स्थापित सार्वजनिक रणनीतियों द्वारा रोका जा सकता है।
शैली चड्ढा (Shelly Chadha) ने बताया कि बच्चों में 60 प्रतिशत से ज्यादा ना सुन पाने की समस्या संक्रमण और जन्म संबंधी जटिलताओं के कारण होता है। उन्होंने बताया कि , इन सभी समस्याओं का समाधान उपलब्ध है। श्रवण तकनीकी जैसे , श्रवण चिकित्सा , कर्णावत बहाल चिकित्सा आदि। यह सभी श्रवण हानि के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकने में सहायक हैं।
उन्होंने कहा कि , दुनिया भर में कई लोग पहले से ही इन तकनीकों का लाभ उठा रहे हैं। लेकिन यह दुनिया का केवल एक छोटा सा समूह है। हमारे अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में केवल 17 प्रतिशत लोगों को ही इन सेवाओं की आश्यकता है लेकिन नहीं इनका क्षेत्र काफी बड़ा है। सबसे ज्यादा समस्या उन देशों में है , जिनके लोगों की आय काफ़ी कम है। इससे उनके पास विशेषज्ञों , ऑडियोलॉजिस्ट और भाषण चिकित्सा की कमी है। जो आवश्यक देखभाल कर सकते हैं।
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डब्ल्यूएचओ (WHO) का कहना है कि , राष्ट्रीय प्राथमिकता देखभाल सेवाओं में कान और सुनने की देखभाल को एकीकृत करके इस अंतर को कम किया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ (WHO) श्रवण हानि देखभाल में निवेश को एक महत्वपूर्ण निवेश मानता कहता है। उनका कहना है कि निवेश किए गए प्रत्येक डॉलर के लिए सरकारें लगभग $16 की वापसी की उम्मीद कर सकता है।(VOA-SM)