religious conversion indian population
सांसद रघु रामकृष्ण राजू(बाएँ) और व्यवसायी अरुण पुडुर(दायें) (Picture Source: Wikimedia Commons And Twitter)

आंध्र प्रदेश के वाईएसआरसीपी सांसद रघु राम कृष्णन राजू की माने तो सरकारी दस्तावेज़ों में इसाइयों की संख्या 2.5% बताने वाले आंकड़ें गलत हो सकते हैं। वाईएसआरसीपी सांसद के अनुसार आंध्रा प्रदेश में असलियत में इसाइयों की संख्या 25% से भी ज़्यादा हो सकती है। उनका कहना है की भले ही सरकारी आंकड़े 2.5% ही बता रहें हो लेकिन राज्य में ईसाई धर्म को मानने वाले और चर्च में हाजिरी लगाने वाले लोगों की संख्या सरकारी अनुमान से बहुत ज़्यादा है । 

भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर अगर बात करें तो हमारे देश में 79.8% लोग हिन्दू धर्म से वास्ता रखते हैं, वहीं 14.2% लोग मुसलमान हैं, जब की आंकड़ों के मुताबिक 2.3% लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं।

हिंदुत्व पर मुखर रूप से अपना पक्ष रखने वाले भारतीय मूल के व्यवसायी अरुण पुडुर द्वारा ट्वीटर पर साझा किए गए एक लंबे विश्लेषण पर अगर गौर किया जाए तो, उनके मुताबिक अभी के समय में भारत में हिंदुओं की संख्या 60% से ज़्यादा नहीं रह गयी है, जबकि धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म अपनाने वाले एससी और एसटी के लोगों को जोड़ कर देखा जाए तो इसाइयों की संख्या भारत में लगभग 18% तक पहुँच गयी है। इसके अलावा अगर अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को जोड़ कर देखेंगे तो मुसलमानों की संख्या भी 20% तक पहुंची हुई नज़र आएगी। 

इन आंकड़ों के पीछे का आधार अरुण पुडुर के मुताबिक कई पादरियों द्वारा किया गया दावा है। दावों के अनुसार दक्षिण मे स्थित राज्य आंध्र प्रदेश में 9 से 12 प्रतिशत लोगों को ईसाई धर्म मे परिवर्तित कराए जाने की बात निकाल कर सामने आई है। तो वहीं एक दावे में 10 करोड़ के लक्ष्य में से 6 करोड़ लोगों का अब तक धर्म परिवर्तन करा दिये जाने का भी ज़िक्र किया गया है। 

अरुण पुडुर के मुताबिक पिछले पाँच सालों से तमिलनाडु भी इन धर्म परिवर्तन कराने वाले धुरंधरों का मुख्य निशाना रहा है।  इसके अलावा अरुणाचल और त्रिपुरा जैसे उत्तर पूरबीय राज्य में भी धर्म परिवर्तन की मुहिम जोरों शोर से चलाई जा रही है। तो वहीं, झारखंड, उड़ीसा, गुजरात, मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में भी धर्म परिवर्तन का कार्य अपने चरम पर है। 

भारतीय कानून में सीधे तौर पर धर्म परिवर्तन के प्रोत्साहन पर प्रतिबंध है, जिसकी वजह से ये लोग, गरीब आदि वासियों की मजबूरी का फायदा उठा कर, उन्हे सीधे तौर पर नहीं बल्कि, शिक्षा, खाना और मेडिकल सुविधा का लोभ देकर अपनी ओर खींचने की कोशिश करते हैं।
इसी क्रम में हिन्दू धर्म के विरोध में घृणा भी फैलाई जाती है। 

एनजीओ की शक्ल में कई ऐसे संगठन हैं जो अनौपचारिक तौर पर धर्म परिवर्तन के एजेंडे पर काम करते है। छोटे इलाकों में रोज़गार के अवसर को खत्म करने के मकसद से ये संगठन अनर्गल मुद्दे उठा कर इलाके में विकास कार्यों को रुकवाने का प्रयास करते हैं। बाद में, नीतिगत तरीके से बेरोज़गार ग़रीबों की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हे लालच दिया जाता है। और इसी क्रम में धर्म परिवर्तन के असली मकसद को साधने का भी प्रयास होता है। 

अरुण पुडुर आगे लिखते हैं की ये बात जगजाहिर है की झारखंड में भारी मात्रा में हुए आदि वासियों के धर्म परिवर्तन के कारण भारतीय जनता पार्टी ने उस राज्य को हमेशा के लिए खो दिया है। दावे के मुताबिक ये लोग धर्म परिवर्तन के बाद भी सरकारी दस्तावेज़ों में अपने नाम को नहीं बदलवाते हैं, जिसके कारण ये लोग आजीवन, एससी-एसटी समुदाय को मिलने वाली सरकारी अनुवृतियों का भी लाभ उठाते हैं। 

बेहिसाब बढ़ रहे धर्म परिवर्तन के मामले आने वाले भविष्य में भारत की डेमोग्राफी को खराब करने की वजह बन सकती है।

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