पूस-माघ की कांपती रात में, सर्दियों के जाने की खुशी और लहलहाते फसलों की कटाई शुरू होने से पहले उत्तर भारत के ज़्यादा तर हिस्सों में 13 जनवरी को लोहड़ी (Lohri) मनाई जाती है। यह पर्व पंजाब के दिल में विशेष स्थान रखता है। लोग लकड़ियों में आगा लगा कर, लोक गीत गाते हुए अग्नि के चारों ओर भांगड़ा या गिद्दा नृत्य करते हैं।
उसके अगले ही दिन मकर संक्रांति के आगमन से आसमान के सीने पर पतंगें टिमटिमाने लगती हैं। इस वर्ष 14 जनवरी को देश भर में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) मनाई जा रही है। इन त्योहारों से जुड़ी कई धार्मिक और अन्य रोचक कहानियां हैं। आइए कुछ ऐसी ही कहानियों पर एक नज़र डालते हैं।
लोहड़ी (Lohri)
पंजाब के नायक ‘दुल्ला भट्टी’
अगर आप लोहड़ी के गीतों को ध्यान से सुनेंगे तो आपको उनमें ‘ दुल्ला भट्टी ‘ का ज़िक्र ज़रूर मिलेगा। ऐसा ही एक गीत है ‘ सुन्दर मुंदलिए ‘, पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह दुल्ला भट्टी हैं कौन जिनका ज़िक्र मात्र इन लोक गीतों में मिलता है।
दुल्ला भट्टी, मुग़ल काल के डाकू और गरीबों के मसीहा थे। बताया जाता है कि मुग़ल शासक अकबर के दौर में जब अमीर सौदागरों ने पंजाब की लड़कियों को खरीदना शुरू किया तो दुल्ला भट्टी ने ही साहस दिखाया और उन लड़कियों को छुड़वाने का दायित्व अपने कन्धों पर ले लिया। दुल्ला भट्टी उन सौदागरों से लड़कियों को छुड़वाते और फिर उनकी शादी भी करवाते थे। और कुछ इस तरह ही दुल्ला भट्टी पंजाब के नायक बन गए। उनकी नेकदिली को याद करते हुए पंजाब के लोग लोहड़ी के दिन उनके नाम के गीत भी गाते हैं और उनसे जुड़ी कहानियां भी सुनाया करते हैं।
यह भी पढ़ें – अहं ब्रह्मास्मि : रामायण और मानव शरीर क्रिया विज्ञान
‘माता सती’ का देह त्याग
लोहड़ी से जुड़ी एक ऐसी भी पौराणिक कथा है जो शिव-सती से हो कर गुज़रती है। कहानी कुछ यूँ है कि एक दफा प्रजापति दक्ष ने अपने राज महल में महायज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को न्योता नहीं भेजा। भगवान शिव के लाख मना करने पर भी माता सती यज्ञ स्थान पर पहुंच गईं। वहां अपने पिता द्वारा अपने पति का अपमान सुनने के पश्चात माता सती ने जलती यज्ञ अग्नि में अपना देह त्याग दिया। प्रजापति दक्ष की पुत्री सती के इस त्याग की याद में ही लोहड़ी पर लकड़ियों को इकट्ठा कर उनमें आग लगाई जाती है।
यह भी है मान्यता …
लोहड़ी के दिन आग जलाकर उसमें रेवड़ी, गजग, मूंगफली, तिल आदि खाने की चीज़ें अर्पित की जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सूर्य और अग्नि देव के प्रति लोग अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकें। मान्यता है कि ऐसा करने से कृषि में उन्नति होती है।
बाकी कड़ाके की ठण्ड में लकड़ियों में दहकती गरम लपटों के आलिंगन में अपने प्रियजनों के साथ दो टुक हंसी बांट लेने से आपसी व्यवहार में रेवड़ी और गजग की मिठास घुलते देर नहीं लगती।
मकर संक्रांति (Makar Sankranti)
स्वर्ग की पतंग
छत के सबसे ऊँचे भाग पर चढ़ कर पतंग की डोर को हाथों में लपेट कर, आसमान के नीलेपन को अपनी पुतलियों में समेटने के बाद सूर्य देव से सीधे आँख बात करते हुए बच्चा, बूढ़ा या जवान हर कोई उत्साह और उल्लास से भर जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि पतंग उड़ाने की प्रथा की शुरुआत किसने की थी। वो कोई और नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम थे। कहते हैं कि जब मकर संक्रांति के दिन पहली बार भगवान श्री राम ने पतंग उड़ाई तो वो पतंग सीधा स्वर्ग लोक में इंद्र देव के पास जा पहुंची।
यह भी पढ़ें – माँ मुंडेश्वरी मंदिर में होते हैं कुछ अनोखे चमत्कार जिसे जानकर आप रह जाएंगे दंग
शनि देव का ‘मकर’
कथाओं के अनुसार सूर्य देव ने अपने बेटे शनि देव और अपनी पहली पत्नी छाया को खुद से दूर कर लिया था। पिता-बेटे के रिश्तों की कसावट बढ़ती गयी। दोनों के बीच की दूरियां बढ़ती गईं। क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता ने सूर्य देव को श्राप दे डाला। श्राप के कारण सूर्य देव पीड़ा से गलते जा रहे थे। यमराज से अपने पिता का यह दुख देखा ना गया और उन्होंने अपनी घोर तपस्या के बल पर सूर्यदेव को श्राप से मुक्त करा दिया। यमराज , सूर्य देव की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र हैं। स्वस्थ होने के उपरान्त सूर्य देव ने बदले की भावना में शनि देव के घर ‘कुम्भ’ को जला डाला।
इसके बाद यमराज ने फिर से हस्तक्षेप किया और अपने पिता को समझाने की कोशिश की। यमराज की बात समझ कर सूर्य देव, शनि देव के भस्म हो चुके घर में गए। वहां एक ‘तिल’ के अलावा बाकी सब राख हो चुका था। शनि देव ने उसी ‘तिल’ से सूर्य देव से क्षमा याचना की। जिसके पश्चात शनि देव को अपने नए घर ‘मकर’ की प्राप्ति हुई।
अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए – Lohri : Things You Must Know About The Harvest Festival
यह भी है मान्यता …
माना जाता है कि मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर किया गया दान अत्यंत लाभकारी होता है। शास्त्रों के अनुसार यह दिन अति-शुभ दिन माना गया है।
अब इन कहानियों के परे देखें तो यह दोनों त्यौहार उत्साह और उल्लास के पर्व हैं। एक दूसरे से स्नेह भरे स्वर में गले मिलने के पर्व हैं। (हाँ मगर, गले मिलने के लिए थोड़ी सावधानी ज़रूर बरतें, धन्यवाद!)